अपना रख पराया चख | अपनी वस्तु की रक्षा, दूसरी की वस्तु का उपभोग |
अकेला चना भाड नहीं फोड़ता | कोई बड़ा कार्य एक आदमी के वंश की बात नहीं। |
अंत भले का भूला | अच्छे कार्य का परिणाम भी अच्छा होता है। |
अटका बनिया दे उधार | अपनी गरज पर दबाना पड़ता है। |
आधा तीर आधा बटेर | अनमेल मिश्रण |
आधी छोड़ पूरी को धाबे आधी मिले न पूरी पावे | लालच छोडे़ थोडे़ में ही संतोष करना चाहिए। लालची को कुछ भी नहीं मिलता। |
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे | स्वयं दोषी होकर निर्दोष को दोषी ठहरा। |
उंगली पकड़ कर पोछा पकड़ना | थोड़ा सहारा बाद में उस पर अपना दावा जमाना |
ऊँची दुकान फीका पकवान | केवल बाहरी चमक दमक, भीतर खोखलापन |
कूद-कूद मछली बगुले को खाये | विपरीत कार्य होना |
क्या काबुल में गधे नहीं होते हैं | अच्छे स्थान पर बुरे लोग भी होते हैं। |
कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर | एक दूसरे की सहायता लेने ही पड़ती है। |
कही की ईट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा | असंगत वस्तुआंेे का मेल बैठाना |
घर का भेदी लंका ढाए | आपसी वैमनस्य से बड़ी हानि होती है। |
घर की मुर्गी दाल बराबर | हरतगंत बीज का विशेष मूल्य नहीं होता |
घी का लड्डू टेठा तला | काम की वस्तु कुरूप होने पर भी ठीक समझी जाती है। |
घर मंे बीबी झोंके भाड़ बाहर मियां सूबेदार | झूठी शान जताना |
चोर के पैर नहीं होते | अपराधी स्वयं भयभीत रहता है। |
चाँदी देख चाँदना, सुख देखे व्यवहार | धनाढ्य के सभी सगे होते है। |
चलती का नाम गाड़ी है। | जैसे सफलता मिले उसी का यश फैले |
जंगल में मोर नाचा किसने देखा | योग्यता एवं वैभव का ऐसे स्थान प्रदर्शन जहाँ उसकी कोई कद्र न हो। |
जैसा देश वैसा भेष | जहां रहो, वहां वैसी रीति पर चले |
देहरी लांघते पाप लगना | अतिशीघ्र बदनामी होना |
दूसरी की पत्तल लम्बा-लम्बा भात | पराई वस्तु सदा अच्छी लगती है। |
नंगे खड़े मैदान में चोर बलैया लेय | जिसकी क्षति होने का भय नहीं है, उसकी रक्षा करना व्यर्थ हैं |
नाई की बारात में सब ठाकुर | स्वंय को सबसे बड़ा मानने वाले लोगों का समूह |
निबल की जोरू सबकी भोजाई | कमजोर को सब दबाते हैं। |
नौ की लकड़ी नब्बे खर्च | मूल्य से अधिक वस्तु की देखरेख में व्यय |
न रहेगा बाँस न रहेगी बाँसुरी | किसी बात के कारण चीज को ही जड़ से ही मिटा देना। |
नौ नगद न तेरह उधार | उधार से नगद थोड़ा मिलना ही अच्छा है। |
नाच न जाने आंगन टेड़ा | अपनी अकुशलता का दोष दूसरों पर ढालना। |
बांह गहे की लाज | शरण में आने वाले की रक्षा |
बिल्ली के गले में घंटी | कठिन कार्य सम्पन्न करना। |
बिन मागें मोती मिले मांगे मिले न भीख | मांगन अच्छा नहीं होता। |
भुस में आग लगाकर जमालों दूर खड़ी | कलह का बीज बो कर तटस्थ रहना |
मियां जी दाढ़ी, तांबी जो मंे गाड़ी | किसी वस्तु का दूसरे में समाप्त हो जाना। |
मुंह में राम बगल में छुरी | ‘कपट व्यवहार’ |
राम की माया कहीं धू कहीं छाया | ईश्वर की इच्छानुसा मुख दुःख सभी जगह है। |
रस्सी जल गली पर बल नहीं गया | बर्बाद होने पर भी अहंकार बना रहना |
लेने एक न देना दो | किसी से कोई मतलब नहीं |
वहीं ढाक के तीन पात | स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं |
सस्ता रोय बार बार मंहगा रोये एक बार | सस्ती वस्तु खरीद कर प्रतिदिन परेशान हाना पड़ता है। |
सेवा करें सो मेवा पावै | सेवा का फल सदा अच्छा होता है। |
हीरे की परख जौहरी जानेे | गुणवान ही गुणों की पहचान करता है। |
हमारी दिल्ली और हमी से म्याऊँ | जिस पर आश्रित होना उसी पर रौब जमाना |
कहाँ राजा भोज कहां गंगु तेली | आकाश पाताल का अंतर |
आम के आम गुठलियांे के दाम | दोहरा लाभ |
घर आए नाम नू पूजिए बामी पूजन जाए | अवसर का लाभ न उठाना और बाद में उसके लिए परेशान सहना |
राम नाम अपना, पराया माल अपना | धोखे से धन जमा करना |
सावन हरे न भादों सूखे | सदा एक समान रहना |
फिसल पड़े तो हरे गंगा | मजबूरी में काम करना |
दोनों हाथों में लड्डु | सब ओर लाभ ही लाभ होना |
एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी | अपराधी होकर उल्टे अकड दिखना |
काठ की हांडी बार-बार नहीं बढ़ती | छल कपट का व्यवहार हमेशा नहीं चलता |
कोई ईर घाट कोई बीर घाट | ताल मेल न होना |
हाथी के पाँव सबका पाँव | बड़े आदमी की हाँ में हाँ मिलाना। |
जैसी बहे बयार पीठ तब तैसी कीजे | समय का रूख देखकर काम करना |
अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता | स्वयं प्रयत्न करने पर काम बनता है। |
जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ न पहुँचे कवि | कवि के लिए कुछ भ्ी आगग्य नहीं है। |
फटे में टाँग अड़ाना | दूसरे के झगड़े में घुसना |
आग लगन्ते झोंपड़ा जो निकले सो लाभ | नुकसान होते होते जो कुछ बच जाए वही बहुत है। |
आ बैल मुझे मार | जान बूझकर मुसीबत मंे पड़ना |
सब धान बाईस पसेरी | अच्छा बुरा सबको एक समान समझना |
जैसी करनी वैसी भरनी | कार्य के अनुसार परिणाम मिलता है। |
कोयले की दलाली में हाथ काला | बुरी संगत से बदनामी मिलती है। |
चमड़ी जाये पर दमड़ी न जायें | मर जाये पर पैसा न जाये |
अपनी करनी पार उतरनी | कर्म का फल अवश्य मिलता है। |
तबेले की बला बन्दर के सिर | किसी का अपराध दूसरे के सिर |
आगे कुआँ पीछे खाई | सभी और से विपत्ति का आना |
नीम हकीम खतरे जान | अल्प विधा भयंकर |
जर कार जोर पूरा है और सब अधूरा है | धन में सब कार्य सिद्ध करने की शक्ति है। |
गुड़ खाये गुलगुलों से परहेज | किसी व्यक्ति से प्यार करके उसके व्यवहार से घृणा |
तू डाल-डाल में पात-पात | दोनों चालाक |
मान न मान में तेरा मेहमान | जबरदस्ती गले पड़ना |
दूध का जला छाछ भी फँूक-फँूक कर पीता है। | एक बार धोखा खाने वाला अधिक सावधान हो जाता है। |
एक एक ग्यारह होते हैं | संगठन में शक्ति है |
अपना हाथ जगन्नाथ | अपने हाथ से कार्य करना। |
अपनी डफली अपना राग | सबका अपने अपने मन के अनुसार चलना |
जैसे नाग नाथ वैसे साँप नाथ | सब एक समान दुष्ट प्रकृति वाले हैं। |
खरबूजे को देखकर घरबूजा रंग बदलता है। | पड़ोस का असर पड़ता है। |
आपु न जावै सासुरे औरन कूँ सिख देत | स्वयं किसी कार्य को न करना और उसको करने के लिए दूसरों को उपदेश देना। |
सूप के फटके सूप नहीं रहते है। | जहां की चीज होती है वहीं चली जाती है। |
आसमान से गिरा खजूर में अटका | किसी काम के बनने में अनेक बाधाओं का उपस्थित हो जाना। |
दुविधा में दोनांे गये मोवा मिली ने राम | अनिश्चय की स्थिति में व्यक्ति दोनों ओर से हानि उठाता हैं |
अब पछताये से होत का जब चिड़िया चुग गयी खेत | समय पर कार्य न करने से बाद में पछताना पड़ सकता है। |
हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होय | बिना खर्च किये कार्य का अच्छा होना। |
आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास | किसी कार्य विशेष की उपेक्षा कर किसी अन्य कार्य में लग जाना |
एक म्यान मंे दो तलवार | सबल प्रतिद्वन्ति एक साथ नहीं रह सकते। |
तीन लोक से मथुरा न्यारी | सबसे अलग विचार करना |
हाँसिये के ब्याह में खुरपी का गीत | असंगत बातें करना |
अन्धा बांटे रेवड़ी चीन-चीन के दे | न्याय के ओर से आँख मूंदकर स्वजनों को लाभ पहुँचाना |
भौर न छाड़े केतकी तीखे कंटक जान | अनेक पेरशानी आने पर भी प्रेमी प्रेम नहीं छोड़ते |
कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है। | अपनी बनायी हुई वस्तु सभी को अच्छी लगती है। |
दस जने की लाठी एक जने का बोझ | सहयोग से काम आसानी से हो जाता है। |
सौ सयाने एक मत | बुद्धिमानों के विचार एक से होते हैं |
खाईये मन भाता पहेनिये जग भाता | निजी जीवन जैसी स्वतंत्रता सार्वजनिक जीवन में नहीं खोजनी चाहिए। |
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद | मूर्ख व्यक्ति गुण की सही परख नहीं कर सकता। |
पत्थर को जांेक नहीं लगती है | सबल का शोषण नहीं होता |
ऊँट दूल्हा पुरोहित गधा | एक मूर्ख व्यक्ति द्वारा दूसरे मूर्ख की प्रशंसा करना |
काला अक्षर भैंस बराबर | अनपढ़ होना |
अरहर की टट्टी गुजराती ताना | अनमोल साधन जुटाना |
कमावै धोती वाला उड़ावै टोपी वाला | परिश्रमी लोग कमाते है, और शोकीन उसे उड़ाते हैं |
जाके पाँव न फटे बिवाई सो क्या जाने पी पराई | जिसके ऊपर बीतती है वही जानता है। |
अन्धेर नगरी वेबूझ राजा टका सेर भाजी टका सेर खाजा | न्याय विहीन शासन |
एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा | एक बुराई पर दूसरी बुराई |
डूबते को तिनके का सहारा | आपत्ति के समय थोड़ी सहायता भी बड़ी होती है। |
काम का न काज का दुश्मन अनाज का | दूसरों पर बोझ बनकर रहने वाला व्यक्ति |
तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता | झूठ बोलाना, शेखी मारना |
कोयले की दलाली में मुँह काला करना | बुरी संगत मंे कलंक लगना |
एक हाथ से ताली नहीं बजती है। | एक ओर से झगडा कभी नहीं हो सकता |
बिल्ली को पहले दिन ही मार देना चाहिए। | भय का समन शुरू में ही कर लेना चाहिए। |
अपना माल खोट तो परखैया का क्या दोष | यदि स्वयं ही दोषी है तो बुर बताने वाले का क्या दोष |
न नौ मन तेरा होगा न राधा नाचेगी | कार्य करने के लिए कोई असाधारण शर्त रख देना। |
आदमी जाने वसे, सौना जानै कत्तै | साथ रहने पर ही किसी व्यक्ति का मूल्यांकन किया जा सकता है। |
बगल में छोरा नगर में ढिंढोरा | वस्तु के पास रहने पर भी उसे चारो ओर ढूंढना |
कागज की नाम अधिक समय तक नहीं चलती | ऊपरी दिखावा दिखाने वालों की जल्द ही पौल खुल जाती है। |
चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात | थोडे़ दिनों का सुख |
नौ सौ चूहे खाये बिलारी बैठी तपको | अनेक पाप करके धर्म की बात करना। |
उतर गयी लोई तो क्या करके कोई | बेशर्म का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |
अन्धा पावै आँखे तो पतियाये | अभिष्ट की प्राप्ति होने पर विश्वास का जमना |
हाथ कंगन को आरसी क्या | प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं |
गुरू गुड चेला चीनी | गुरू से चेले का आगे बढ़ जाना |
अशर्फियां लुटे और कोयले पर छाप | मूल्यावाल वस्तुआंे की ओर ध्यान न देकर व्यर्थ की चीजांे की फिक्र करना। |
ऊँट मक्का की ओर भागता है। | अपनी जन्म भूमि को सब प्रेम करते है। |
यह मूँह और मसूर की दाल | हैसियत से बढकर चाहना |
खग जाने खग ही की भाषा | चालाक ही चालाक की बात समझता है। |
ऊधौ का लेना न मांधौ का देना | अपने काम से काम |
आप मियाँ जी मांगते द्वार खड़े दरवेश | किसी निर्धन के घर भिखारियों की भीड़ होना |
आँख न दीदा काड़े कसीदा | साधन न होने पर भी काम कर लेना। |
हाथ सुमरनी बगल कतरनी | कपटपूर्ण व्यवहार |
अन्धे के आगे रोबे अपने नैना खोवे | जो अपने दुख के को न समझे उसके आगे दुखड़ा रोने से कोई लाभ नहीं होगा। |
अपना घर दूसरे सूझता है। | अपने मतलब की बात कोई नहीं रखता है। |
यथा राजा तथा प्रजा | स्वामी के अनुसार ही सेवक भी होते है। |
घड़ी मंे तौला घड़ी मंे मासा | जरा सी बात पर खुश होकर नाराज होना। |
आग लगने पर कुआँ खोदना | विपत्ति आ जाने पर उसका निराकरण करना |
हाथी के दांत दिखाने और खाने | दिखावा कुछ और असलियत कुछ और |
अंधे के हाथ वटेर लगना | अपात्र को सफलता मिलना |
कखरी मंे लरका गाँव गोहार | वस्तु के पास होने पर भी दूर-दूर तक उसकी तलाश करना |
नेकी और पूछ-पूछ | अच्छे कार्य के लिये आज्ञा की क्या आवश्यकता |
तेली का तेल जले मसालची का दिल जले | एक को खर्च कते देख दूसरा परेशान |
बोए पेड़ बबूल का आम कहां से होए | बुरे काम का फल अच्छा नहीं हो सकता |
ऊँट को निगल लिया ओर दुम को हिचके | बड़ी विपत्ति को स्वीकार करना और साधारण पर संकोच करना |
नई नईन बाॅस का नैहन्ना | नये शोक को पूरा करने के लिए अजीम कार्य करना |
खेती पाती बीनती ओर घोडे़ की तंग, अपने हाथ संभालिये चाहे लाख लोग होये संग | अपना कार्य स्वयं करो |
नेकी कर दरिया में डाल | उपकार करके भूल जाना चाहिए |
हथेली पर सरसों नहीं जमती | कोई कार्य झटपट नहीं हो सकता |
गधा खेत खाये जुलाहा पीटा जाये | किसी के कर्म की सजा किसी और को मिले |
चोर-चोर मौसरे भाई | एक पेशे वाले आपस में नाता जोड़ लेते हैं |
अन्धे को अन्धेर मंे बहुत दूर की सूझी | मूर्ख ने बुद्धिमानी की बात की |
आम खाने या पेड़ गिनने | व्यर्थ की बातें करके केवल अपने मतलब की बात करना |
पर उपदेश कुशल बहुतेरे | दूसरों को उपदेश देना आसान समझना |
दर्जी की सुई कभी ताश में कभी टाट में | खाली न होना |
आँख का अन्धा गाँठ का पूरा | मूर्ख किन्तु धनी |
खोदा पहाड़ निकली चुहिया | अधिक परिश्रम किन्तु लाभ कम |
पढ़े फारसी बेचे तेल या देखो कुदरत का खेल | विवश होकर योग्यता से निम्न स्तर का कार्य करना। |
पाव भर चून पुल पर रसोई | सीमित साधन होने पर भी अधिक लोगों को निमंत्रित करना। |
कौआ भी हौंड न ले जायेगो | दूर रहने वालों की कोई खबर नहीं होती |
तीन दिन महमान चैथे दिन हैवान | अतिथि कुछ दिनों का ही अच्छा होता है। |
साँच को आँच नहीं | सच्चे को डरने की आवश्यकता नहीं होती |
हाथी निकल गया दुम रह गयी | सारा काम हो गया बस थोड़ा सा रह गया है। |
भागते भूत की लंगोटी भली | जो मिल गया वही बहुत |
अन्त भले का भला | अच्छे कार्य का परिणाम भी अच्छा होता है। |
प्रभुता पायी काहि मद नाहीं | धन वैभव प्राप्त होने पर मनुष्य मंे घमण्ड आ जाता है। |
एक पथ दो काज | एक काम से दोहरा लाभ |
आगे नाथ न पीछे पगहा | किसी प्रकार का अंकुश न होना |
घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या | अपना हक लेने में लिहाज न करना |
थका ऊँट सराय तकता है। | दिन भर की महनत के बाद घर की याद आती है। |
अध जल गगरी छलकत जाये | अल्पज्ञ द्वारा गर्व प्रदर्शन करना। |
जाको राखे साइयाँ मार सके न कोए | जिसकी रक्षा ईश्वर करता है उसे कष्ट नहीं पहुँचा सकता है। |
कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता | हठी मनुष्य किसी का कहना नहीं मानता है। |
आँख का अन्धा नाम नयन सुख | गुण के विपरीत नाम |
मन के हारे हार है मन जीते जीत | हतोत्साहित होन पर असफलता और निरन्तर उत्साह पूर्वक कार्य करने वासले को सफलता मिलती है। |
ऊँट के मुँह में जीरा | जरूरत से बहुत कम |
घोडांे का घर कितनी दूर | पुरूषार्थाी व्यक्ति को सफलता सरल होती है। |
पुचकारा कुत्त्ता सिर चढे | ओछे लोग मुँह लगाने पर अनुचित लाभ उठाते हैं। |
अरध तजहि बुध सरबस जाता | सब कुछ नष्ट हो रहा हो तो बुद्धिमान आधा छोड़ देते है। |
माने भीख पूछे गाँव की जतमा | अपनी असलियत भूूलकर बात करना। |
घर फँूक तमाशा देखना | शान के लिए औकात से बाहर व्यय करना |
एक तन्दुरस्ती हजार नियामत | स्वास्थ्य बहुत बड़ी ची है। |
सिर सहला भेजा खाऐ | दोस्त बनकर हानि पहुँचाना |
एक अनार सौ बीमार | किसी वस्तु की पूर्ति कम किन्तु माँग अधिक होना। |
जल में रहकर मगरमच्छ से बैर | आश्रयदाता को शत्रु नहीं मानना चाहिए। |
तेल देखो तेल की धार देखो | रूख पहचानना |
गंगा गए गंगादास , जमुना गए जमुनादास | जिसका कोई दृढ सिद्धान्त नहीं होता। |
नई घौंसन उपलों की तकिया | अपने नए शौक को पूरा करने के लिए अनप्रेक्षित कार्य करना |
जो गरजते हैं वे बरसते नहीं | केबल बड़ी-बड़ी बातें |
छछुन्दर के सिल में चमेली का तेल | अयोग्य व्यक्ति को अच्छा पद मिलना |
अपने घर मंे दिया जलाके तक मस्जिद मंे जलाते हैं | पहले अपना स्वार्थ पूरा करके तब परमार्थ किया जाता है। |
एक तबे रोटी क्या छोटी क्या मोटी | सब लगभग एक समान होना |
चोर की दाढ़ी मंे तिनका | अपराधी सदा शंका से घिरा रहता है। |
नई-नई मुसलमानी, अल्लाह ही अल्लाह पुकारे | नवीन पद प्राप्त होने पर अपने को अधिक प्रदर्शित करना। |
अन्धी पीसे कुत्ता खाये | असावधानी के अयोग्य को लाभ |
घर मंे नहीं दाने बीबी चली भुनाने | सामथ्र्य से बाहर कार्य करना। |
आप डूबे तो जग डूबा | बुरा आदमी सबको बुरा कहता है। |
अंधों में काना राजा | अयोग्य व्यक्तिओं के बीच कम योग्य व्यक्ति भी आदर पाता है। |
सौ दिन चोर का एक दिन साहूकार का | कई बार अपराध करके बच जायें पर एक पकड़े जाने पर पूरा दण्ड लि जाये |
अंधा क्या चाहे दो आँख | अत्यावश्यक, वस्तु को प्राप्त करने की लालसा |
के हंसा माती चुगै के लंघन कर मर जाये | बहुत स्वादिष्ट भोजन करने वाला व्यक्ति |
कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवे | अधिक धन दुःख का कारण है। |
मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन | मुफ्त में मिली वस्तु का अपमान करना। |
आया है जो जायेगा क्या राजा क्या रंक | मृत्यु रका प्रकृति का शासवत नियम है। |
बन्दर की आशनाई घर मंे आग लगाई। | मूर्ख से मित्रता करने पर हानि होती है। |
कंगाली में आटा गीला होना | मुसीबत पर और मुसीबत आना |
ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती | आवश्यकता से कहीं न्यून वस्तु की प्राप्ति। |
ईतर के घर तीतर बाहर टांगे कि भीतर | नई चीज लोगों को दिखाने की चाह |
खारी मजदूरी चोखा काम | नगद और अच्छी मजदूरी से काम अच्छा होता है। |
मढे़ दमामा जात कहुँ चूहे के चाम | छोटे लोगों से बड़ा काम नहीं होता |
एक मछली सारे तालाबा को गंदा करती है। | एक बुरे व्यक्ति के कारण पूरी बिरादरी बदनाम होती है। |
कबीरा हाँड काठ की चढ़े न बारबार | छल कपट का काम एक बार होता है। |
जिस पेड के तले बैठना उसी की जड़े काटना | आश्रय देने वाले का विनाश करना। |
ठाली बनिया क्या करै, इस कोठी के धान उस कोठी में धरै | बेकार आदमी व्यर्थ के काय्र्र करना है। |
धोवे सौ-सौ बार भी काजर होये न स्वेत | बुरे व्यक्ति पर शिक्षा का कोई असर नहीं होता। |
साॅप छछुन्दर की सी गति होना | दुविधा में पड़ना |
जादू वही जो सिर चढ़कर बोले | उपाय वही अच्छा जो सफल हो और जिसे विरोधी भी माने |
एक चुप सौ को हराये | मौन रहना अत्यंत हितकारी है। |
चोट्टी कुतिया जलेबी की रखवाली | भक्षक को रक्षक का काम सौंपना |
जो तोको काॅटा वुबे ताहि बोय तू फूल | बुराई का बदला भलाई से दो |
दाल-भात में मूसलचन्द्र | आवश्यक दखल देना |
दुधारू गाय की लात भली | जिससे लाभ की आशा हो उसकी झिडकियां भी भली |
भूखे भजन न होहिं गोपाला | क्षुधा तृप्ति से हो कार्य झमता आती ह। |
मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक | जिसका आना जाना सीमित क्षेत्र तक हो |
पानी पीकर जाति नहीं पूछी जाती। | काम होने के बाद उसके बारे में खोजबीन करना व्यर्थ है। |
छोड़न का घर कितनी दूर | व्यक्ति को छोटा काम भी बड़ी लगता है। |
पाँसा पड़े सो दाँव, रोजा करे सो न्याउ | अधिकार की बात मान्य होती है। |
दलाल दीवाला, क्या मस्जिद का ताला क्या | विशेष क्षति का भय न हो तो रक्षा की व्यवस्था व्यर्थ है। |
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा | किसी की आँखों के आगे उसका सर्वस्व लुट जाना |
ओठों निकली कोठों चढ़ी | मुँह से निकली बात गुप्त नहीं रहती |
अपनी नाक काटकर दूसरे का अपशकुन करना | अपनी हानि करके दूसरे की हानि करना। |
होम करते हाथ जलना | किसी अच्छे काम को करते हुए विपत्ति आ जाना। |
नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है। | बड़ों के सामने छोटों की बात कोई नहीं सुनता। |
अपनी पगढ़ी अपने हाथ धोना | व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा स्वयं बनाता है। |
चोरी का माल मोरी में | हराम की कमाई व्यर्थ जाती है। |
उल्टेबाँस बरेली को | विपरीत कार्य |
चाँद को भी ग्रहण लगता है। | विपत्ति सभी पर आती है। |
Friday, 3 February 2017
लोकोक्तियाँ
लोकोक्तियाँ
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Major Technological Inventions And Inventors - प्रमुख तकनीकी आविष्कार और आविष्कारक
आप तो जानते है कि "आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है" लेकिन इन आविष्कार को करने के लिये आविष्कारक भी होने चाहिये, अगर ये आविष्कारक (...

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लोकोक्तियाँ अपना रख पराया चख अपनी वस्तु की रक्षा, दूसरी की वस्तु का उपभोग अकेला चना भाड नहीं फोड़ता कोई बड़ा कार्य एक आदमी के वंश की बात नहीं...
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तत्सम - तद्भव तत्सम तद्भव सप्त सात पत्र पत्ता सूर्य सूरज हस्त हाथ अंध अंधा अश्रु आँसू अगम्य अगम उपवास उपास यजमान जिजमान अद्य आज भिक्षा भीख ...
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Fill in the blanks with appropriate prepositions:- Ram killed the snake.............a stick. He lives..............Alwar. Rice ...
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