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Saturday, 23 December 2017

Major Technological Inventions And Inventors - प्रमुख तकनीकी आविष्कार और आविष्कारक

आप तो जानते है कि "आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है" लेकिन इन आविष्कार को करने के लिये आविष्कारक भी होने चाहिये, अगर ये आविष्कारक ( Inventor ) न हों तो शायद ये आविष्कार (Inventions) हम तक कभी पहॅुॅच ही न पायें। ऐसी एक सूची हम आपके लिये लायें हैं जिसमें 27 एेसे आविष्कारक और उनके अाविष्कारों ( Inventions ) के नाम हैं, जिन्‍होनें पूरी दुनियाॅॅ को बदल कर रख दिया तो आईये जानते हैं प्रमुख तकनीकी आविष्कार (Technical Inventions) और आविष्कारक  Major Technological Inventions And Inventors के नाम -

प्रमुख तकनीकी अाविष्कार और अाविष्कारक - Pramukh Takniki Avishkar Aur Aviskarak





  • 1822 - आधुनिक कंप्यूटर का आविष्कार - चार्ल्स बैबेज

  • 1868 - कीबोर्ड का आविष्कार - क्रिस्टोफर लैथम

  • 1925 - टेलीविजन का आविष्कार  - जॉन लॉगी बेयर्ड ( John Logie Baird )

  • 1938 - फोटो कॉपी/जेरॉक्स मशीन का आविष्कार - चेस्टर कार्लसन

  • 1950 -  तार वाला रिमोट कंट्रोल (Wire Remote Control) "Lazy Bones" - जेनिथ रेडियो कारपोरेशन ( Zenith Radio Corporation )

  • 1954 - हार्ड डिस्क ड्राइव का आविष्कार- आईबीएम की टीम

  • 1955 -  वायरलैस रिमोट कंट्रोल का आविष्कार ( Wireless Remote Control) "Flashmatic" - यूजीन पॉली (Eugene Polley)

  • 1955 - लीथियम ऑयन बैटरी (एवरेडी बैटरी)  का आविष्कार - लेविस उरी ( Lewis Urry )

  • 1957 - कंप्यूटर स्कैनर का आविष्कार - Russell A. Kirsch

  • 1958 - वीडियो गेम का आविष्कार -  विली हिंगिनबॉथम ( Willy Higinbotham )

  • 1960 - ओवरहेड प्रोजेक्टर का आविष्कार   - Roger Appledorn

  • 1963 - माउस का आविष्कार - डग एंजेलबर्ट

  • 1969 - Smiley चेहरे का आविष्कार  - मूर्रे और Bernard

  • 1969 - लेज़र प्रिंटर का आविष्कार - गैरी स्टार्कवेदर

  • 1971 - फ्लापी डिस्क का आविष्कार - एलान शुगार्ट

  • 1971 - माइक्रोप्रोसेसर का आविष्कार - इंटेल

  • 1975 - डिजिटल कैमरा का आविष्कार - स्टीव सैसन 7 ( Steve Sasson 7 )

  • 1975 - पर्सनल कम्प्यूटर का आविष्कार- एड रॉबर्ट्स (Ed Roberts)

  • 1975 - पर्सनल कम्प्यूटर का आविष्कार- एड रॉबर्ट्स (Ed Roberts)

  • 1975 - लेजर प्रिंटर का आविष्कार - आईबीएम

  • 1980 - C++ (सी ++) का आविष्कार - Bjarne Stroustrup (बजर्नी स्त्रौस्त्रूप)

  • 1988 - सीडी बर्नर का आविष्कार  - Taiyo Yedun

  • 1991 - वाई फाई का आविष्कार- John O'Sullivan और John Deane

  • 1994 - ब्लूटूथ का आविष्कार - एरिक्सन कंपनी ( Ericsson company )

  • 1995 - GPS का आविष्कार - डॉन रिआ (Don Rea)

  • 1995 - यूएसबी का आविष्कार - अजय भट्ट

  • 2000 - यूएसबी फ्लैश ड्राइव का आविष्कार  - ट्रेक टेक्नोलोजी


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What is Wi-Fi - वाई-फाई क्या है

वाई-फाई ( Wi-Fi) आधुनिक युग का डाटा और इंटरनेट शेयर करने का सबसे आसान और तेज तरीका है, लेकिन ये वाई-फाई ( Wi-Fi ) आखिर है क्‍या और किस तकनीक पर आधारित है आईये जानने की कोशिश करते हैं - वाई-फाई क्या है (Kya Hai Wi-Fi) -

वाई-फाई क्या है - What is Wi-Fi



वाई-फाई ( Wi-Fi) की पूरा नाम (full form) वायरलेस फिडेलिटी (Wireless fidelity) है, वाई-फाई ( Wi-Fi) आविष्‍कार John O'Sullivan और John Deane ने सन् 1991 में किया था। असल में यह एक वायरलैस नेटवर्किंग सुविधा है, जिसे आप (WLAN) यानि Wireless Local Area Network के नाम से जानते हैं, जिसकी सहायता से आप बडी आसानी से मोबाइल, लैपटॉप, कंम्‍प्‍यूटर और प्रिंटर जैसी डिवाइसों को इंटरनेट और नेटवर्क से जोड सकते हैं।

वाई-फाई के नाम से जुडा तथ्‍य - Facts About Wi-Fi Technology



कहते हैं वायरलेस फिडेलिटी (Wireless fidelity) का असल में कोई मतलब नहीं है, असल में वाई-फाई एलायंस (Wi-Fi Alliance) कंपनी इस वाई-फाई ( Wi-Fi) डिवाइस को बनाती है उन्‍होनें हाई-फाई ( Hi-fi ) यानि हाई फिडेलिटी की तर्ज पर इसे वाई-फाई नाम दिया है, जिसका कोई अर्थ नहीं है। यह केवल वाई-फाई एलायंस पंजीकृत ट्रेडमार्क शब्द है। लेकिन फिर भी इसे वायरलेस फिडेलिटी (Wireless fidelity) केे नाम सेे जाना जाता है।

वाई-फाई कैसे काम करता है - How Does Wi-Fi Technology Work



वाई-फाई ( Wi-Fi) डिवाइस बिना किसी तार के दो डिवाइसों के बीच में कनेक्‍शन बनाता है, जिसके लिये यह रेडियो फ्रीक्वेंसी (Radio Frequency) का इस्‍तेमाल करता है, यह टेक्नोलॉजी IEEE 802.11 कई स्टैण्डर्ड पर बेस्ड है जिसकी आवृत्ति 2.4GHz से 5GHz के बीच होती है, वायरलेस नेटवर्क किसी भी डिवाइस को कनेक्‍ट करने के लिये एक Access Point (AP) की आवश्‍कयता होती है और जिस ऐरिया में वाई-फाई ( Wi-Fi) होता है उसे हॉट-स्पॉट (Hotspot) कहते है।



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What is Li-Fi - क्‍या है लाई-फाई

अब तक आप वायरलेस नेटवर्क ( Wireless Network ) बनाने के लिये वाई-फाई ( Wi-Fi) तकनीक का इस्‍तेमाल कर रहे थे, लेकिन टेक्नोलॉजी ( Technology ) बदलते देर नहीं लगती है, एक नई तकनीक लाई-फाई (Li-Fi) आ चुकी है, Li-Fi की स्‍पीड Wi-Fi के मुकाबले 100 गुना तेज है, आईये जानते हैं क्‍या है लाई-फाई - What is Li-Fi

क्‍या है लाई-फाई - What is Li-Fi




लाई-फाई ( Li-Fi ) का पूरा अर्थ है लाइट फिडेलिटी (light fidelity), इसका अाविष्‍कार (Invention) एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर/इंजीनियर हेराल्ड हास ( Harald Haas ) ने सन् 2011 में किया था। यह भी वाई-फाई ( Wi-Fi) की तरह ही एक वायरलैस नेटवर्किंग सुविधा है। जो Purelifi के सीईओ भी हैं।


वाई-फाई ( Wi-Fi) रेडियो फ्रीक्वेंसी (Radio Frequency) पर आधारित है, इसके विपरीत लाई-फाई ( Li-Fi ) असल में प्रकाश पर आधारित है, जो वाई-फाई से की तुलना में 100 गुना तेजी से डाटा का आदान-प्रदान करने में सक्षम है। लाई-फाई ( Li-Fi ) तकनीक में डाटा का आदान-प्रदान करने के लिये LED बल्‍ब का प्रयेाग किया जाता है यानि इस तकनीक में डेटा विजिबल लाइट कम्युनिकेशन (वीएलसी) द्वारा ट्रांसफर होता है। जिस प्रकार आपका टीवी रिमोट काम करता है कुछ-कुछ उसी तरह।


लाई-फाई तकनीक का एक बड़ा फायदा यह है कि यह वाई-फाई की तरह दूसरे रेडियो सिग्नल के लिए अवरोध नहीं बनता है. इसलिए इसका इस्तेमाल हवाई जहाज जैसी उन जगहों पर किया जा सकता है जहां रेडियो सिग्नल में अवरोध की समस्या आती है।


इसमें एक खामी भी है, चूंकि यह तकनीक प्रकाश पर आधारित है इसलिये यह फाई ( Wi-Fi)सिग्‍नल की तरह दीवार या किसी ठोस वस्‍तु के अार-पार जाने में अक्षम है।


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What is Hi Fi ( High Fidelity ) - क्‍या है ( हाई-फाई ) हाई फिडेलिटी

अब आपने वाई-फाई ( Wi-Fi ) समझा, लाई-फाई ( Li-Fi ) समझा अब बारी है इससे मिलते जुलते एक और शब्‍द की हाई-फाई (Hi Fi) , लेकिन ये वो वाला हाई-फाई नहीं है जिसे आप आमतौर पर किसी भी विशिष्‍टता बताने के लिये प्रयोग करते हैं, ये है एक नये जमाने की टेक्नोलॉजी है, जिसे आप प्रयोग काफी दिनों सेे प्रयोग कर रहे हैं, आईये तो जानते हैं क्‍या है (Hi Fi) हाई फिडेलिटी - What is Hi Fi ( High Fidelity )

क्‍या है ( हाई फाई ) हाई फिडेलिटी  टेक्नोलॉजी - What is Hi Fi Technology



असल में हाई फिडेलिटी ( High Fidelity ) शब्‍द आज ऑडियाे या साउण्‍ड से जुडा हुआ है, इस तकनीक में ऑडियाे की गुणवत्‍ता में उच्‍च स्‍तर का सुधार किया जाता है, जिससे उसे आपके सुनने लायक बनाया जा सके, लेकिन इसमें हमेशा सुधार की गुंंजाइश रहती है, यह तकनीक तक से चली आ रही हैै जब से स्‍पीकर बने हैं -


उदाहरण के लिये वर्ष 1960 में रिलीज हुई ऐतिहासिक फिल्म मुगले-ए-आजम को कलर करने के बाद उसके साण्‍उड को डिजिटल किया गया, क्‍योंकि उस मूवी में रिकार्डेट ऑडियो आज के समय के स्‍पीकर के हिसाब से ठीक नहीं था, उसमें काफी सारी खामियां थी, लेकिन उस समय के हिसाब से वही साण्‍उड ठीक था। यानि ( हाई-फाई ) हाई फिडेलिटी पर काम बहुत समय से चल रहा है।


तो आखिर क्‍या होती है ( हाई-फाई ) हाई फिडेलिटी साउण्‍ड (high fidelity sound) , इसे ऐसे कह सकते हैंं कि हम अगर आप ऑख बंंद करके स्‍पीकर से साउण्‍ड सुनें तो आपको ऐसा लगे कि आप वास्‍तविकता में उसी जगह पर हैं जिसकी आप आवाज सुन रहे हैं न कि कोई रिकॉर्डिंग।

 
इसी तकनीक का इस्‍तेमाल कर आज के दौर के स्‍पीकर ( speaker) हेडफोन ( Headphones ) और साउंड सिस्टम (Stereo Systems) बनाये जा रहे हैं, जो आपको वास्‍तविक साउंड ( Real Sound ) का अनुभव करा रहे हैं। जिससे कभी ध्‍वनि भ्रम (real sonic illusion) की स्थिति भी उत्‍पन्‍न हो जाती है।


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What Happens When We Click REFRESH Button In Computer - कंप्यूटर रिफ्रेश करने से क्‍या होता है ?

अक्‍सर लोग अपने Computer के Desktop को दे दना दन Refresh करते रहते हैं, लेकिन जब उनसे पूछा कि भई ऐसा क्‍यों कर रहे तो उन्‍होनें कहा कि दूसरे भी ऐसा करते हैं और किसी ने कहा कि Refresh करने से Computer की Speed बढती है तो क्‍या ये वाकई में सही है, आईये जानने की कोशिश करते हैं कि कंप्यूटर रिफ्रेश करने से क्‍या होता है (Computer Refresh Karane Se Kya Hota Hai) -

कंप्यूटर रिफ्रेश करने से क्‍या होता है - Computer Refresh Karane Se Kya Hota Hai



Computer को Refresh करने के लिये माउस से Right Click किया जाता है और मेन्‍यू में से Refresh को सलेक्‍ट किया जाता हैै या कीबोर्ड से Shortcut Key " F5 " का प्रयोग कर Refresh किया जाता है, बहुत से लोगों को केवल यही पता है कि Computer में Refresh करने का Option केवल Desktop पर ही होता है, लेकिन ऐसा नहीं है Refresh का Option Computer में उन सभी जगह होता है जहॉ उसकी जरूरत होती है, Desktop पर किसी Folder के अंदर यहॉ तक कि कंट्रोल पैनल (Control Panel) में भी, ऐसा क्‍यों ?





    • कंप्यूटर हार्डवेयर सीखें

    • 5 टिप्‍स सेकेंड हैंड या पुराना कंप्‍यूटर खरीदने के लिये

    • इन टिप्स से कंप्यूटर को बनाएं सुपरफास्‍ट





लेकिन 90% लोग यही करते हैं आप भी right-click – refresh’ .. ‘right-click – refresh’ जब भी खाली हों बस ‘right-click – refresh’ पर सोचा है इससे होता क्‍या है, चलिये बताते हैं -


पुराने कंप्‍यूटर (Old Computer) बहुत स्‍लो हुआ करते थे, जब उनमें कोई नया फोल्‍डर या फाइल बनायी जाती थी या कोई अन्‍य बदलाव किया जाता था तो वह इतनी जल्‍दी दिखाई नहीं देेता था, लेकिन रिफ्रेश करने से वह बदलाव तुरंंत दिखाई दे जाता था।


अगर तकनीकी भाषा में कहें तो जब प्रोसेसर (Processor) और रैम (RAM)  लंबे समय तक कार्य करने के बाद कंप्‍यूटर स्‍लो हो जाते हैं, कंप्‍यूटर को अपडेट (Update) नहीं कर पाते हैं और जब आप Refresh करते हैं तो प्रोसेसर सक्रिय हो जाता है अौर रैम फ्री हो जाती है, एक प्रकार से इससे आपको स्‍पीड बढने का एहसास होता है लेकिन असल में F5 या Refresh करने की प्रक्रिया आपके रैम और प्रोसेसर की स्थिति को up-to-date करने के लिये होती है।


आज के कंप्‍यूटर अपने आप अपडेट (Update) हो जाते हैं और आपको पता भी नहीं चलता है लेकिन अगर ऐसा न हो तो आप F5 या Refresh कर सकते हैं और यह ऑप्‍शन है भी इसलिये।


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क्या है ड्रोन/क्‍वाड कॉप्‍टर विमान - What is Drone/Quadcopter

अभी हाल ही में गूगल और एमेजन में ड्रोन (Drone) के माध्‍यम से सामान की होम डिलेवरी करने की तैयारी है, भारत में ड्रोन (Drone) का प्रयोग बढता जा रहा है, कहीं पुलिस अपराधियों को पडकने के लिये तो कहीं किसान अपने खेतों में कीटनाशक का छिड़काव करने के लिये ड्रोन (Drone)  का इस्‍तेमाल कर रहे हैं और कुछ जगह तो शादियों में भी वीडियोग्राफी करने के लिये ड्रोन कैमरे (Drone Camera) का इस्‍तेमाल हो रहा है, लेकिन अभी भी बहुत लोगों के ड्रोन अभी भी एक पहेली है तो आईये जानते हैं क्या है ड्रोन/क्‍वाड कॉप्‍टर विमान - Kya Hai Drone/Quadcopter

क्या है ड्रोन/क्‍वाड कॉप्‍टर विमान - Kya Hai Drone Quadcopter



ड्रोन एक आधुनिक युग का चालक रहित विमान है, इसे कहीं दूर से रिमोट या कंप्‍यूटर द्वारा ऑपरेट किया जा सकता है, एक बेसिक ड्रोन डिजायन चार विंंग यानि पंखोंवाला (चतुष्कोण) होता है, इसलिये इसे क्‍वाड कॉप्‍टर भी कहते हैं। ड्रोन शब्द अंग्रेजी भाषा का शब्द है जिसका हिंंदी भाषा में अर्थ होता है नर मधुमक्‍खी। असल में यह नाम इसके उडने के कारण इसे मिला  यह बिलकुल एक मधुमक्‍खी की तरह ही उडता है, एक जगह पर स्थिर भी रह सकता है यानि मंडरा सकता है।

ड्रोन का प्रयोग पहली बार आस्ट्रिया ने वेनिस पर बम बरसाने के लिए किया था और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 'फ्लाइंग बम'  का काफी इस्तेमाल किया गया था असल में यह मानव रहित विमान थे जो विकसित होकर आज के दौर के ड्रोन बने हैं।

अभी भारत में ड्रोन के सटीक कानून नहीं है, लेकिन (डीजीसीए) यानि नागर विमानन महानिदेशालय अब इसके लिए गाइडलाइन तैयार कर रहा है, जिसमें भारत में ड्रोन उडाने के लिये कडे नियम बनाये जा सकते हैं, जिसमें हर ड्रोन के लिये एक अलग यूनिक आइडैंटीफिकेशन नंबर (यू.एन.आई.) नंबर होगा बिलकुल फोन के आईईएमआई नंबर की तरह।

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What is Dictaphone - क्‍या है डिक्टाफोन

डिक्टाफोन (Dictaphone) शायद यह नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा, लेकिन आपको जानकार आश्‍चर्य होगा कि यह तकनीक 1881 को हमारे बीच में आ गयी थी, डिक्टाफोन (Dictaphone) ध्वनि रिकॉर्डिंग करने वाला एक अविष्‍कार था, जिसे बनाने में अलेक्जेंडर ग्राहम बेल (Alexander Graham Bell) महत्‍वपूर्ण योगदान रहा- आईये जानते हैं क्‍या है डिक्टाफोन - What is Dictaphone

क्‍या है डिक्टाफोन - Kya Hai Dictaphone



आज आप बोले गये शब्‍दों (Speech) को Text में Converter के लिये Speech Recognition जैसे Software का इस्‍तेमाल करते हैं, जिसके लिये अापको माइक्रोफोन (Microphone) और कंप्‍यूटर (computer) का इस्‍तेमाल करना होगा, लेकिन हर जगह तो आप माइक्रोफोन (Microphone) और कंप्‍यूटर (computer) नहीं ले जा सकते हैं, लेकिन डिक्‍टाफोन ( Dictaphone) एक ऐसा उपकरण है जो बोले हुए शब्दों को रिकार्ड कर सकता है और जरूरत पडने पर टाइप में या Text में Convert भी कर सकता है।


अभी हाल ही में दिल्‍ली की निचली अदालत में डिक्‍टाफोन ( Dictaphone) का प्रयोग करने पर विचार किया गया है, जिसमें डिक्‍टाफोन ( Dictaphone) स्टेनो टाइपिस्ट (Steno Taepist) की गैरमौजदूगी में भी जजों द्वारा दी गयी डिक्टेशन (dictation ) के आधार पर जजमेंट टाइप कर सकेेगा। यानि जज बिना स्टेनो टाइपिस्ट (Steno Taepist) के भी आर्डर टाइप कर सकेंगें।


"डिक्टाफोन" नाम वाई-फाई (Wi-Fi) की तरह ही एक अमेरिकी कंपनी का ट्रेडमार्क है, जो श्रुतलेख मशीन (dictation machine) बनाया करती थी, जिससे अाप किसी भी भाषण आद‍ि को रिकार्ड कर बाद में सुन सकते थे और टाइप कर सकते थे। सन् 2000 से पहले डिक्टाफोन केवल आवाज रिकार्ड कर सकता था, इनमें वॉइस रिकग्निशन सिस्टम (Voice Recognition Systems) जो रिकार्ड किये गये शब्‍दों को टाइप करने में सक्षम था। वर्तमान में "डिक्टाफोन" कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कंपनी Nuance Communications की एक शाखा है।

आज के समय में कई कंपनियॉ वॉइस रिकग्निशन सिस्टम (Voice Recognition Systems) का प्रयोग कर रही हैं लेकिन यह सब "डिक्टाफोन" से ही प्रेरित हैं।


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क्या है ड्रोन/क्‍वाड कॉप्‍टर विमान - What is Drone/Quadcopter

अभी हाल ही में गूगल और एमेजन में ड्रोन (Drone) के माध्‍यम से सामान की होम डिलेवरी करने की तैयारी है, भारत में ड्रोन (Drone) का प्रयोग बढता जा रहा है, कहीं पुलिस अपराधियों को पडकने के लिये तो कहीं किसान अपने खेतों में कीटनाशक का छिड़काव करने के लिये ड्रोन (Drone)  का इस्‍तेमाल कर रहे हैं और कुछ जगह तो शादियों में भी वीडियोग्राफी करने के लिये ड्रोन कैमरे (Drone Camera) का इस्‍तेमाल हो रहा है, लेकिन अभी भी बहुत लोगों के ड्रोन अभी भी एक पहेली है तो आईये जानते हैं क्या है ड्रोन/क्‍वाड कॉप्‍टर विमान - Kya Hai Drone/Quadcopter

क्या है ड्रोन/क्‍वाड कॉप्‍टर विमान - Kya Hai Drone Quadcopter



ड्रोन एक आधुनिक युग का चालक रहित विमान है, इसे कहीं दूर से रिमोट या कंप्‍यूटर द्वारा ऑपरेट किया जा सकता है, एक बेसिक ड्रोन डिजायन चार विंंग यानि पंखोंवाला (चतुष्कोण) होता है, इसलिये इसे क्‍वाड कॉप्‍टर भी कहते हैं। ड्रोन शब्द अंग्रेजी भाषा का शब्द है जिसका हिंंदी भाषा में अर्थ होता है नर मधुमक्‍खी। असल में यह नाम इसके उडने के कारण इसे मिला  यह बिलकुल एक मधुमक्‍खी की तरह ही उडता है, एक जगह पर स्थिर भी रह सकता है यानि मंडरा सकता है।

ड्रोन का प्रयोग पहली बार आस्ट्रिया ने वेनिस पर बम बरसाने के लिए किया था और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 'फ्लाइंग बम'  का काफी इस्तेमाल किया गया था असल में यह मानव रहित विमान थे जो विकसित होकर आज के दौर के ड्रोन बने हैं।

अभी भारत में ड्रोन के सटीक कानून नहीं है, लेकिन (डीजीसीए) यानि नागर विमानन महानिदेशालय अब इसके लिए गाइडलाइन तैयार कर रहा है, जिसमें भारत में ड्रोन उडाने के लिये कडे नियम बनाये जा सकते हैं, जिसमें हर ड्रोन के लिये एक अलग यूनिक आइडैंटीफिकेशन नंबर (यू.एन.आई.) नंबर होगा बिलकुल फोन के आईईएमआई नंबर की तरह।

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क्‍या होता है एनएफसी फीचर - What Is NFC Feature

एनएफसी फीचर (NFC feature) -  अगर आपने अभी हाल ही में सैमसंग स्मार्टफोन गैलेक्सी जे 3 (Samsung Galaxy J3) हो तो इसमें मोटरसाइकिल सवारों के लिए एक खास फीचर बाइक एस मोड दिया गया है और साथ में एक एस बाइक मोड का स्‍टीकर (S Bike Mode Sticker) दिया गया है, जिस पर मोबाइल टच करने से मोबाइल का एस बाइक मोड (S Bike Mode) एक्टिविट हो जाता है, असल में यह फोन एनएफसी इंटिग्रेटेड (Integrated NFC) है। आईये जानते हैं कि आखिर क्‍या है एनएफसी तकनीक (NFC technology) और यह कैसे काम करती है - क्‍या होता है एनएफसी फीचर - What Is NFC Feature

क्‍या होता है एनएफसी फीचर - Kya Hota Hai NFC Feature




एनएफसी क्या है - NFC Kya Hai ?


असल में एनएफसी ( NFC) की फुलफार्म है नियर फील्ड कम्युनिकेशन (Near Field Communication) है, यह एक High Frequency Wireless Communication Technology है, जो कम दूरी यानि ज्‍यादा से ज्‍यादा 10 सेमी की दूरी से दो डिवाइसों के बीच डाटा ट्रांंसफर कर सकती है, इसकी मदद से आप केवल एक फोन का दूसरे फोन से टच करने भर से ही तेज गति से डाटा ट्रांसफर कर सकते हैं। NFC कनेक्‍शन डिवाइस का टच करने पर तुरंत जुड जाता है और काम खत्‍म होने पर अपनेआप बंद हो जाता है। NFC कनेक्‍शन ब्लूटूथ के मुकाबले 300 MBPS की गति सेे डाटा ट्रांसफर कर सकता है।


सैमसंग स्मार्टफोन गैलेक्सी जे 3 (Samsung Galaxy J3) के साथ में एस बाइक मोड का स्‍टीकर (S Bike Mode Sticker) दिया जाता है यह स्‍टीकर एक NFC Tag है, जिसमें NFC टैग एक तरह की चिप होती है, जिसमें छोटी सी इन्फोर्मेशन (Information) सेव की जा सकती हैै, बिलकुल क्‍यूआर कोड (QR Code) की तरह और जब आप इससे मोबाइल टच करते हैं जिसमें डाली गयी सूचना केे अााधार पर आपके फोन का एस बाइक मोड (S Bike Mode) एक्टिव हो जाता है।

इसके अलावा आप NFC से आप डाटा ट्रांसफर कर सकते हैं, मोबाइल वॉलेट (Mobile Wallet) का इस्‍तेमाल कर मोबाइल पेमेंट कर सकते हैं। अब तो NFC Business Card का भी प्रयोग होने लगा है, जिसमें आपकी सारी सारी डिटेल्स रहती है, जब किसी को वह डिटेल्स देनी हो तो बस अपना मोबाइल उसके मोबाइल से टच कर दिया।


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मोबाइल प्रोसेसर क्या है - What Is Mobile Processor

स्‍मार्टफोन भी एक प्रकार का कंप्यूटर होता है और जिस प्रकार कंप्‍यूटर में प्रोसेसर (Processor) लगा होता है, उसकी प्रकार स्‍मार्टफोन में भी प्रोसेसर (Processor) होता है और आजतक लोग फोन खरीदने से पहले यह देखने लगे हैं उसमें कौन सा प्रोसेसर (Processor) लगा है, अगर आप भी नया फोन खरीदने जा रहे हैं तो पहले मोबाइल प्रोसेसर (Mobile Processor) जान लें -

मोबाइल प्रोसेसर क्या है - What Is Mobile Processor



आजकल मार्केट में डुअल-कोर, क्वाड-कोर, ऑक्टा-कोर वाले फोन आ रहे हैं, लेकिन ज्‍यादातर यूजर्स पहले ही प्रोसेसर नाम से कंफ्यूज थे अब वे इससे परेशान हैं कि ये कोर क्‍या है वो भी कई तरह के ? अब कैसे एक अच्‍छे प्रोसेसर वाले फोन का चुनाव करें, सबसे पहले जानते हैं कि प्रोसेसर में कोर क्‍या है ?

प्रोसेसर में कोर क्‍या है - What Is Core In Processor


असल मेंं कोर (Core) सीपीयू यानि प्रोसेसर के अंदर लगी एक गणना (computation) करने वाली यूनिट या चिप होती है, एक कोर वाले को Single Core Processor कहते हैं प्रोसेसर की शक्ति गीगाहर्टज (GHz) पर निर्भर करती है, यानि जो प्रोससेर जितने ज्‍यादा गीगाहर्टज (GHz) का होगा उतनी ही तेजी से गणना करेगा। अब फिर सेे बात करते हैंं कोर की डुअल-कोर, क्वाड-कोर, ऑक्टा-कोर क्‍या हैं ?



Single Core Processor ज्‍यादा बोझ पडते ही हैंग होने लगता था, इसलिये इसकी क्षमता बढाने के लिये प्रोसेसर में अतिरिक्‍त कोर (Core) लगाये जाते हैं, इनकी संख्‍या के आधार पर ही प्रोसेसर के नाम पडें आईये जानते हैं -


  1. दो कोर मतलब -  Dual Core Processor

  2. चार कोर मतलब - Quad Core Processor

  3. छह कोर मतलब - Hexa Core Processor

  4. आठ कोर मतलब - Octo Core Processor

  5. दस कोर मतलब - Deca Core Processor


स्‍मार्टफोन के लिये Snapdragon, Mediatek और ARM Cortex जैसी कंपनियां Processor बना रहीं हैं, आप अपने बजट के हिसाब से कोर (Core) और गीगाहर्टज (GHz) को देखते हुए मोबाइल प्रोसेसर (Mobile Processor) के अनुसार स्‍मार्टफोन का चुनाव कर सकते हैं।



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प्रोसेसर में गीगाहर्ट्ज़ क्‍या होता है - What Is GHZ (Gigahertz) in Processor

प्रोसेसर ( Processor) को तो आप समझ ही चुके हैं, लेकिन इसकी क्षमता निर्धारित करने वाला शब्‍द और भी है गीगाहर्ट्ज़ (Gigahertz), हमने यही पढा है कि प्रोसेसर जितने ज्‍यादा गीगाहर्ट्ज़ (Gigahertz) का होगा, वह उतना ही शक्तिशाली होगा लेकिन यह गीगाहर्ट्ज़ (Gigahertz) होता है, आईये जानते हैं -

प्रोसेसर में गीगाहर्ट्ज़ क्‍या होता है - What Is GHZ (Gigahertz) in Processor



गीगाहर्ट्ज़ को समझने से पहले हमें हर्ट्ज़ या CPU Clock Rate या CPU Clock Speed को समझना होना, प्रोससर के अंदर एक प्रकार की घडी होती है वह एक सेकेण्‍ड में जितनी बार घूमती है, यानि गणना करने में जितना समय लेती है उसे Clock Speed कहते है और इस घडी की ईकाई है हर्ट्ज, यानि अगर आपके सीपीयू की क्षमता 1 हर्ट्ज है, Clock Speed 1 चक्र प्रति सेकंड मानी जायेगी

अब जरा इस टेबल को देखिये  -



  • 1 गीगाहर्ट्ज़ = 1000 मेगाहर्ट्ज़ = 1000000 किलोहर्ट्ज =  1000000000 हर्ट्ज

  • 1 मेगाबाइट = 1,000,000 बाईट = 1024 किलाेबाइट = 1024 हर्ट्ज



इस प्रकार 1 गीगाहर्ट्ज़ (Gigahertz) का मतलब 1,000,000,000 हर्ट्ज होता है, इसका मतलब अगर आपके प्रोसेसर पर लिखा है कि वह 2.1 GHz का है तो वह तो वह उसकी Clock Speed होगी यानि वह 1 सेकेण्‍ड में 2.1x 1000000000 = 2100000000 किलाेबाइट डाटा की गणना कर सकता है।


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कैप्चा क्‍या है - What Is Captcha

अक्सर आप जब किसी साइट पर नई ईमेल आईडी या नया अकाउंट बनाते हैं तो एक टेढ़ी-मेढ़ी सी इमेज दिखाई देती है जिसमें कुछ नंबर या फोटो दिखाई देते हैंं इसे कैप्चा (Captcha) कहते हैं, लेकिन यह कैप्चा (Captcha) होता क्या है जो आम यूजर्स को अक्सर परेशान करता है, आखिर कैप्चा (Captcha) बनाने की क्‍या जरूरत थी, आईये जानने की कोशिश करते हैं - कैप्चा क्‍या है -  What Is Captcha

कैप्चा क्‍या है - Captcha Kya Hai



कैप्चा (Captcha) एक प्रकार का चैलेंज टेस्ट होता है कैप्चा (Captcha) की फुल फॉर्म है, (Completely Automated Public Turing Test to tell Computers and Humans Apart) जिसे केवल इंसान ही सुलझा सकता है इससे पता चलता है की अकाउंट बनाने वाला व्यक्ति इंसान ही है ना कि कंप्यूटर।


कैप्चा (Captcha) के टेढ़े-मेढ़े अक्षरों को केवल मनुष्‍य ही पढ सकता हैै और समझ सकता है, फिलहाल कैप्चा (Captcha) को पढना कंंप्‍यूटर के बस में नहीं है। कैप्चा (Captcha) का सीधा सा फार्मूला है कि कैप्चा (Captcha) हल कीजिये और साबित कीजिये कि आप कंप्‍यूटर नहीं मनुष्‍य हैं। लेकिन मनुष्‍य को खुद को साबित करने की जरूरत क्‍यों पडी ?


चलिये उदाहरण के लिये जीमेल को लेते हैं, जब आप जीमेल पर नया अकाउंट बनाते हैं तो आपकी सुविधा के लिये गूगल की तरफ से अपने सर्वर पर 15 GB का स्‍पेस फ्री दिया जाता है, अब कुछ खुरापती लोग ऐसे भी होते हैं जिन्‍हें आप स्पैमर के नाम सेे भी जानते हैं वो कुुछ ऐसे ऑटोमेटिक कंप्‍यूटर प्रोग्राम बना देते हैं जो दिन भर बिना बात जीमेल पर नया अकाउंट बनाते रहेंं, अब सोचिये अगर दिन भर में इस ऑटोमेटिक कंप्‍यूटर प्रोग्राम ने 100 नयेे अकाउंट बना दिये तो जीमेल का 1500 GB यानि 1.5 TB स्‍पेस बेकार कर दिया बस उन्‍हीं से बचने के लिये कैप्चा (Captcha) कोड को बनाया गया है

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क्‍या है एफिलिएट मार्केटिंग - What is Affiliate Marketing

इंटरनेट पर सर्फ करते समय आपको कई सारी वेबसाइट ऐसे मिल जायेगीं, जिन पर एफिलिएट मार्केटिंग (Affiliate Marketing ) शब्‍द का प्रयोग किया जाता है, तो क्‍या होता है ये एफिलिएट मार्केटिंग (Affiliate Marketing ) और क्‍या फायदा है इसका आईये जानते हैं - क्‍या है एफिलिएट मार्केटिंग - What is Affiliate Marketing -

क्‍या है एफिलिएट मार्केटिंग - Kya Hai Affiliate Marketing




आज जब डिजिटल मार्केट अपने पैर भारत में जमा रहा है तो ऐसे कई सारी ई-कॉमर्स (E-commerce) कंपनियां नये ग्राहकों को जोडनेे और प्रचार करने के लिये एफिलिएट मार्केटिंग (Affiliate Marketing) का सहारा लेती है, एफिलिएट मार्केटिंग (Affiliate Marketing) के लिये आम यूजर्स का ही सहारा लिया जाता है और होने वाले फायदे में यूजर्स को कुछ कमीशन दिया जाता है, जिससे प्रचार करने वाले यूजर की भी कुछ कमाई हो जाती है

Affiliate Marketing कैसे काम करता है


जब आप किसी ई-कॉमर्स (E-commerce) कंपनी का एफिलिएट मार्केटिंग (Affiliate Marketing) प्रोग्राम ज्वाइन करते है तो आपको एक रेफरल लिंक/कोड (Referral Link/Code) प्राप्त होता है और जब भी कोई व्यक्ति या ग्राहक आपके रेफरल लिंक/कोड (Referral Link/Code) पर क्लिक कर कोई सामान खरीदता या कुछ डाउनलोड करता है तो कंपनी आपको कमीशन देती है, इस प्रकार कंपनी और आपका दोनों का फायदा होता है, इसमें कमाई सीमित नहीं होती है आपकी परफॉरमेंस जितनी अच्‍छी होगी आप उनका ही फायदा एफिलिएट मार्केटिंग (Affiliate Marketing) से ले पायेगेंं


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क्‍या है टाइम जोन ? What is Time Zone

टाइम जोन (Time Zone) या मानक समय इसे आप क्षेत्रीय समय के नाम सेे भी जानते हैं यह 1884 में 13 अक्टूबर के ही दिन ग्रीनविच मीन टाइम तय किया गया था और दुनिया भर की घडियों का समय इसी टाइम जोन (Time Zone) सेे तय किया जाता है लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि आखिर इस टाइम जोन (Time Zone) को निर्धारित करने की क्‍या जरूरत है, आईये जानते हैं क्‍या है टाइम जोन ? What is Time Zone

क्‍या है टाइम जोन ? What is Time Zone




18 वींं सदी से पहले दुनिया भर में सूर्य घड़ी (Sun Clock) सेे समय देखा और मिलाया जाता था, लेकिन  सर सैंडफोर्ड फ्लेमिंग (Sir Sandford Fleming) 1884 में टाइम जोन को बनाया, जिससे दुनिया भर के समय को सही द‍िशा मिली


असल में जब सूर्य उदय होता है तो एक समय में पृथ्वी के किस एक ही हिस्से में रह सकता है। इस प्रकार पृथ्वी किसी हिस्से में सूर्य की तिरछी किरणें पड़ती हैं तो कहीं सीधी किरणें। इसीलिए जब किसी स्थान में दोपहर का समय होता है किसी स्थान में शाम का और किसी में रात का समय भी हो सकता है।


अगर पूरी दुनिया की घडियांं एक साथ मिला दी जायें तो बहुत बडी गडबड हो जायेगी जैसे किसी के यहां 5 बजे सुबह होगी तो किसी के यहां 5 बजे दोपहर तो किसी के यहां 5 शाम। इस समस्या को हल करने के लिए समय देशांश रेखाओं के आधार पर क्षेत्रीय समय को बनाया गया।


पूरी दुनिया के नक्‍शे को देशांश रेखाओं (Longitude lines) के आधार पर प्रत्येक 15 अंश के अंतर पर 24 बराबर बराबर के काल्‍पनिक हिस्सों में बाँट दिया गया है और इसकी शुरुआत (0 अंश) से होती है। यह 0 अंश वाली रेखा इंग्लैंड के ग्रीनविच में स्थित वेधशाला से शुरू होती है, समय की गणना यहींं आरंभ होती है। इसे अंतर्रराष्ट्रीय मानक समय (ग्रीनविच मीन टाईम) के नाम से जाना जाता है। ग्रीनविच रेखा से दाहिनी ओर वाले देशों का समय आगे होता है और ग्रीनविच रेखा से बाईं ओर वाले देशों का समय पीछे होता है


इसी प्रकार हर देश का अपना मानक समय है भारत में यह रेखा जो कि इलाहाबाद के निकट नैनी से गुजरती है यही से भारत का राष्ट्रीय मानक समय माना जाता है भारत का मानक समय ग्रीनविच रेखा से 82.5° अंश दाहिनी ओर है, जिसका अर्थ है कि भारत का मानक समय ग्रीनविच के मानक समय से साढ़े पाँच घंटे आगे है। यानि जब ग्रीनविच रेखा के पास रात के 12 बजेंगे तब यहां के सुबह के 5.30 बजेंगे।



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Friday, 22 December 2017

क्या है रेफरल लिंक/कोड - What is a Referral Link/Code

अक्‍सर आपको इंंटरनेट का इस्‍तेमाल करते समय रेफरल लिंक (Referral Link) या रेफरल कोड (Referral Code) जैसे शब्‍द दिखाई देते होगें, या तो यह लिंक आपको किसी वेबसाइट पर या व्‍हाट्सएप और फेसबुक ग्रुप में आपके दोस्‍तों द्वारा शेयर किये जाते हैं तो आखिर क्‍या होता है रेफरल लिंक (Referral Link) या रेफरल कोड (Referral Code) का मतलब और इनसे क्‍या फायदा होता है आईये जानते हैं क्या होता है रेफरल लिंक/कोड - What is a Referral Link/Code -


क्या होता है रेफरल लिंक/कोड - What is a Referral Link/Code




रेफरल लिंक (Referral Link) या रेफरल कोड (Referral Code) का सीधा संबंध एफिलिएट मार्केटिंग (Affiliate marketing) से असल में कुछ बेवसाइट या एप्‍लीकेशन अपने प्रोडक्‍ट या एप्‍लीकेशन को प्रमोट करने के इंटरनेट और मोबाइल यूूजर्स का सहारा लेती हैैंं, जिसके बदले वह प्रमोट करने व्‍यक्ति को कमीशन भी देती है, जब कंपनी अपने किसी प्रोडक्‍ट को अापसे प्रमोशन कराती है तो वह आपको एक यूनिक लिंक देती हैै, असल में यह लिंक एक ट्रेकिंग लिंक (Tracking Links) होता हैै, जिससे पता चलता हैै कि आपके द्वारा किये गये प्रमोशन से कंपनी की वेबसाइट को कितने क्लिक मिलेे या अगर एप्‍लीकेशन है तो किनते बार वह एप्‍लीकेशन आपके द्वारा दिये गये लिंक से डाउनलोड हुई, इन्‍हींं लिंक्‍स को रेफरल लिंक (Referral Link) कहते हैं, इसके अलावा कुछ एप्‍लीकेशन में रेफरल कोड (Referral Code) का आप्‍शन होता है, यह कोड भी यूनिक और ट्रेकिंग कोड होता है अौर बिलकुल ट्रेकिंग लिंक (Tracking Links) की तरह ही काम करता है।

रेफरल लिंक का फायदा - Benefits Of the Referral Link


कई सारी कंपनिया रेफर और अर्न प्रोग्राम चलाती है, जिसके लिये आपको उनकी बेवसाइट या एप्‍लीकेशन पर रजिस्‍टर करना होता है वहां सेे आपको एक रेफरल लिंक (Referral Link) या रेफरल कोड (Referral Code) दिया जाता हैै, इस लिंक को आप कहीं भी शेयर कर सकते हैं, अगर आपके रेफरल लिंक (Referral Link) पर क्लिक कर या रेफरल कोड (Referral Code) का इस्‍तेमाल कर कंपनी को कोई फायदा होता है तो वह उसमें आपको भी तय कमीशन देती है, इस तरह सेे आपकी घर बैठे कमाई हो जाती है, बहुत से इंटरनेट यूजर्स इन्‍हीं से पैसा कमा रहे हैं, यह ऑनलाइन पैसे कमाने के कुछ आसान तरीकों में से एक है।


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क्‍या है इलेक्ट्रॉनिक आर्टिकल सर्विलांस - What is Electronic Article Surveillance (EAS)

EAS यानि इलेक्ट्रॉनिक आर्टिकल सर्विलांस (Electronic Article Surveillance) नये जमाने का एंटी थीफ सिस्‍टम (Anti-thief systems) है, EAS (Electronic Article Surveillance) का इस्‍तेमाल अब भारत में भी होने लगा है, आईये जानते हैं EAS (Electronic Article Surveillance) के बारे में


क्‍या है इलेक्ट्रॉनिक आर्टिकल सर्विलांस - What is Electronic Article Surveillance (EAS)


असल में ईएएस (EAS) का प्रयोग रात के चोरों के लिये नहीं बल्कि दिन के चोरों के लिये किया जा रहा है, ऐसे लोग जो दिन के समय भी लाइब्रेरी या शॉपिंग मॉल से लोगों की नजर बचाकर सामान चोरी कर लेते हैं, यह तकनीक उन्‍हीं लोगों को पकडने के लिये है। अभी हाल ही में विश्व पुस्तक मेला 2017 में भी किताब चोरों के लिए EAS यानि इलेक्ट्रॉनिक आर्टिकल सर्विलांस का तकनीक का प्रयोग किया गया हैै।

कैसे काम करती है EAS यानि इलेक्ट्रॉनिक आर्टिकल सर्विलांस


इसके तहत लाइब्रेरी या शॉपिंग मॉल हर प्रोडक्‍ट पर एक एक्टिवेटेड चिप लगाई जाती है इसे Security Tag या EAS Tag भी कहते हैं, अगर कोई व्‍यक्ति पेमेंट काउंटर पर बिना पेमेंट किये बाहर जाता है गेट पर लगे eas sensor उसे पकड लेते हैं जिससे सिक्‍योरिटी अलार्म (Security Alarm) बज उठता है और चोर पकडा जाता है, लेकिन जब आप पेमेंट काउंटर पर पेमेंट करते हैं तो EAS Tag को Tags Removal मशीन से डीएक्टिवेट कर दिया जाता है।


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एटीएम क्या है - What is ATM

एटीएम (ATM) यानि आटोमेटिड टैलर मशीन (Automated Teller Machine) वैसे तो आप एटीएम (ATM) से पूरी तरह सेे परिचित हैं क्‍यों इससे पैसे जो निकलते हैं, भारत में नोटबंदी के दौरान एटीएम (ATM) पर लगी लम्‍बी कतारें कोई नहीं भूल सकता है एटीएम (ATM) ने से ही लोगाें को राहत मिली थी, लेकिन एटीएम (ATM) के बारे में अभी भी ऐसी कई जानकारी है जो आपके लिये जानना जरूरी है - आईये जानते हैं क्या है एटीएम - What is ATM

एटीएम क्या है - What is ATM



ATM का पूरा अर्थ है ऑटोमेटेड टैलर मशीन (Automated Teller Machine) इसका हिंदी नाम स्वचालित गणक मशीन है, इसे आटोमेटिक बैंकिंग मशीन(Automatic banking machine), कैश पाइंट (Cash Point) , बैंनकोमैट (Bankomat) भी कहते हैं, आधुनिक एटीएम की सबसे पहली पीढ़ी का प्रयोग 27 जून, 1967 में लंदन के बार्केले बैंक ने किया था। इससे पहले 1960 के दशक में एटीएम (ATM) को बैंकोग्राफ नाम से जाना जाता था, माना जाता है कि लंदन में इसका सबसे पहले इस्तेमाल हुआ और इसके आविष्कार का श्रेय जॉन शेफर्ड बैरन (John Shepherd-Barron) को दिया जाता है. उनका जन्म ब्रिटिशकालीन भारत में 23 जून 1925 को मेघालयके शिलॉन्ग में हुआ था


बैरन एटीएम का पिन 6 डिजिट का करने के पक्ष में थे, लेकिन उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि 6 डिजिट ज्यादा है और लोग इसे याद नहीं रख पाएंगे। इस कारण बाद में उन्होंने चार डिजिट का एटीएम पिन बनाया। आज भी चार डिजिट का ही पिन चलन में है।


भारत में पहली बार 1987 में एटीएम की सुविधा शुरू हुई थी। भारत में पहला एटीएम हॉगकॉग एंड शंघाई बैंकिंग कॉरपोरेशन (एचएसबीसी) ने मुंबई में लगाया था। वर्तमान में एटीएम का प्रयोग दिनचर्या का महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है।

कैसे काम करता है एटीएम (ATM)


एटीएम एक तरह का डाटा टर्मिनल (Data Terminal) होता है, जिसमें मोनीटर, की-बोर्ड माउस जैसे इनपुट और आउटपुट डिवाइस होते हैं। यह होस्ट प्रोसेसर (Host Processor) से जुड़ा होता है, जो बैंक और एटीएम के बीच कड़ी का काम करते हैं। इसके लिये इंटरनेट की मदद ली जाती है। इससे यूजर के एटीएम में एटीएम कार्ड डालते ही बैंक के होस्ट प्रोसेसर से जुड़ जाता है। ऐसे में वह बिना बैंक जाए ही अपने खाते से पैसा निकाल सकता है।


  • हर ग्राहक के डेबिट या क्रेडिट कार्ड के पिछले हिस्से में एक खास Magnetic strip होती है, जिसमें उसकी पहचान संख्या व अन्य जरूरी जानकारियां कोड के रूप में होती हैं।

  • जब ग्राहक कार्ड को एटीएम के कार्ड-रीडर में डालता है, तो एटीएम मैग्नेटिक स्ट्रिप में छिपी इन जानकारियों को पढ़ लेता है।

  • यह जानकारी जब होस्ट प्रोसेसर के पास पहुंचती है, तो वह ग्राहक के बैंक से ट्रांजेक्शन का रास्ता साफ करता है।

  • जब ग्राहक कैश निकालने का विकल्प चुनता है तो होस्ट प्रोसेसर और उसके बैंक अकाउंट के बीच एक Electronic Fund Transfer प्रक्रिया होती है।

  • इस प्रक्रिया के पूरा होते ही होस्ट प्रोसेसर एटीएम को एक अप्रूवल कोड भेजता है। यह कोड एक तरह से मशीन को पैसा देने के आदेश के समान होता है।


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डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड क्या होते है - What is Credit Card And Debit Card

डेबिट कार्ड (Debit Card) और क्रेडिट कार्ड (Credit Card) आज हर कोई इस्‍तेमाल कर रहा है, अगर सामान्‍य तरीके से देखा जाये तो क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड दोनों का प्रयोग प्लास्टिक मनी के तौर पर किया जाता है लेकिन क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड दोनों में अंतर होता है, आईये जानते हैं डेबिट कार्ड (Debit Card) और क्रेडिट क्रेडिट कार्ड (Credit Card) क्या होते है - What is Credit Card And Debit Card

डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड क्या होते है - What is Credit Card And Debit Card



क्रेडिट कार्ड क्या है - What is Credit Card


क्रेडिट कार्ड (Credit Card) देखने में बिलकुल साधारण सा होता है, लेकिन यह बहुत पावरफुल होता है असल में आप क्रेडिट कार्ड (Credit Card) तब भी कर सकते हैं जब आपके अकांउट में बैलेंस शून्‍य हो, यानि क्रेडिट कार्ड (Credit Card) एक प्रकार से Postpaid SIM की तरह ही काम करता है, बस अंतर इतना है कि एक ऋण है जिसे आप क‍भी भी उपयोग में ला सकते हैं और आसान मासिक किस्तों में उस रकम को चुका सकते हैं, क्रेडिट कार्ड (Credit Card) से खर्च की गई रकम पर ब्याज लगता है, बिलकुल जिस प्रकार आप बैंक से लोन लेते हैंं अंतर बस इतना है कि यहां आपको बिना किसी कागजी कार्यवाही के क्रेडिट कार्ड (Credit Card) के माध्‍यम से लोन दिया जाता है


डेबिट कार्ड क्या है - What is Debit Card


डेबिट कार्ड (Debit Card) बैंक द्वारा ग्राहक को एटीएम (ATM) से पैसे निकलने के लिए दिया जाता है, जब आप कहीं भी भुगतान करने के लिये डेबिट कार्ड (Debit Card) का इस्‍तेमाल करते हैं तो सीधे आपके बैंक खाते से इस धनराशि की कटौती की जाती है, यानि डेबिट कार्ड (Debit Card) का पूरी तरह से प्रीपेड है, अगर आपके बैंक खाते हैं पैसे नहीं है तो आप डेबिट कार्ड (Debit Card) इस्‍तेमाल नहीं कर सकते हैंं



डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड में अंतर - Difference Between Debit Card And Credit Card



  • जब आप डेबिट कार्ड (Debit Card) से कोई भी शॉपिंग या खरीदारी या एटीमए से नकद निकालते हैं तो रकम आप खाते से सीधे रकम काट ली जाती है, लेकिन जब आप क्रेडिट कार्ड (Credit Card) का इस्‍तेमाल करते हैं तो आपके किये गये हर लेन-देन का बिल जाता है।

  • डेबिट कार्ड (Debit Card) लेने के लिये आपके पास एक बैंक खाते का होना आवश्‍यक है।

  • क्रेडिट कार्ड (Credit Card) लेने के लिये आपके पास बैंक खाते का होना आवश्‍यक नहीं है।

  • डेबिट कार्ड (Debit Card)  में अभी ख़रीदो, अभी भुगतान करो का विकल्प होता है

  • क्रेडिट कार्ड (Credit Card) में अभी खरीदो, बाद में भुगतान करो का विकल्प रहता है



क्‍या क्रेडिट कार्ड (Credit Card) का इस्‍तेमाल एटीएम मशीन पर किया जा सकता है ? Can We Use Credit Card in ATM Machine ?


जी हां आप क्रेडिट कार्ड (Credit Card) का इस्‍तेमाल ATM Machine पर कर सकते हैं और cash withdraw कर सकते हैंं, लेकिन हर बार क्रेडिट कार्ड (Credit Card) का इस्‍तेमाल ATM Machine करने पर Transaction Fee ली जाती है।


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क्‍या होता है कंप्‍यूटर में अवतार - What Is Avatar in Computer

जब से James Cameron की अवतार मूवी (Avatar Movie) आयी है तब लोगों में अवतार (Avatar) को लेकर जिज्ञासा बढ गयी है, वैसे तो हिंदू धर्म में जब भगवान धरती पर अवतरित होते हैं या जन्‍म लेते हैं तो उसे अवतार कहते हैं लेकिन कंप्‍यूटर की दुनिया में अवतार (Avatar) अर्थ अलग ही होता है, तो क्‍या आप जानना नहीं चाहते हैं कि computing में क्‍या होता है अवतार (Avatar) -

क्‍या होता है कंप्‍यूटर में अवतार - What Is Avatar in Computer




कंप्‍यूटर Avatar आपका ग्राफिकल प्रतिरूप होता है, असल में जब आप गेम खेलते हैं या किसी चैटग्रुप में चैट करते हैं तो यह Avatar आपको री प्रेजेंट करता है, यह और भी कारगर तब होता है जब आप ऑनलाइन  मल्‍टीप्‍लेयर गेम खेल रहे होते हैं, जिसमें 2 या उससे अधिक प्‍लेयर होते हैं तब आपका अवतार ही आपको री प्रेजेंट करता है, चूंकि आप तो गेम में नहीं जा सकते हैं


Avatar एक आयकन भी हो सकता है या कोई 2D या 3D Realistic Character भी हो सकता है अगर अवतार मूवी की बात करें तो वहां भी कुछ कुछ ऐसा ही किया गया है, लेकिन वास्‍तविक दुनिया में आप अपना ऐसा अवतार नहीं बना सकते हैं जो आपकी तरह सोचता हो और या आपको दूसरे ग्रह पर ले जा सकता हो,  खैैर चलिये वास्‍त‍ि‍विक दुनिया की बात करते हैं, यहां Role Playing Video Games में अवतार का इस्‍तेमाल होता है


सबसे पहले कंप्‍यूटर की दुनिया में अवतार शब्‍द का इस्‍तेमाल 1979 में हुआ था, उस समय एक Role Playing Video Game आया था जिसका नाम था Avatar, इसे University of Illinois PLATO system ने बनाया था


अवतार आपके Gaming Experience को कई गुना बढा देते हैं, अगर आपको याद हो 8bit Games के समय में भी Avatar हुआ करते थे, अगर आपने Strike Games खेले हों तो उनमें आपके प्‍लेयर का Avatar दिया गया होता है, अगर आप गेम में आपके अवतार के घायल होने का मतलब है कि आप हार रहे हैं,


आज तक बहुत से लोग अपनी फेसबुक या अन्‍य सोशल नेटवर्किंग साइट के लिये अपने फोटो के बजाय अपने Avatar का इस्‍तेमाल करते हैं, इसके अलावा Artificial intelligence के लिये भी Avatar का इस्‍तेमाल किया जाता है


ऐसी कई वेबसाइट हैं जहां आप अपना Avatar बना सकते हैं -



  • doppelme.com

  • avatarmaker.com

  • Pickaface.net

  • avatarmaker.net


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क्‍या होता है एनॉनमस ईमेल - What is Anonymous Email

अक्सर कभी कभी हमें कुछ जगह पर अपनी पहचान छिपा कर जानकारी देने की जरूरत होती है, एनॉनमस ईमेल (Anonymous-email) की सहायता से आप बिना अपनी ईमेल आईडी के किसी भी व्‍यक्ति को ईमेल कर सकते है, लेकिन इसके लिये आपको एनॉनमस ईमेल (Anonymous-email) के बारे में जानना जरूरी है, आईये जानते हैं Anonymous-email क्या है? और आप एक Anonymous Email किस प्रकार भेज सकते हैं?

क्‍या होता है एनॉनमस ईमेल - What is Anonymous Email


Anonymous email क्या है?


आपको क्या लगता है । Anonymous-email का क्या मतलब हो सक़ता है? आइए जरा इस Group of words को Break करके बारी-बारी से इनका मतलब समझते हैं। Anonymous: गुमनाम, बेनाम और Email: यानि ई-चिठ्ठी

👉 इस तरह की मेल का गलत प्रयोग कभी न करें क्‍योंकि अगर इस तरह की मेल का प्रयोग आपने किसी गलत काम के लिए किया तो मेल भेजने वाले यूजर को आसानी से ट्रैक कर सकता है, इस प्रकार के ईमेल का दुरूपयोग करने पर आपको साइबर क्राइम के तहत सजा 👽 हो भी सकती हैै 👈

Anonymous-email उस Email को कहते हैं जिसका कोई नाम पता नहीं होता है या फिर अगर होता भी है तो बिल्कुल Fake होता है। जब हम Gmail या किसी और Email-service से email भेजते हैं तो Receiver को यह पता होता है कि यह email whatever@example.com के द्वारा send की गई है और उसे यह पता होता है कि यह email इस व्यक्ति ने भेजा है पर Anonymous - email में Receiver को यह पता नहीं होता है कि यह Email किसके द्वारा भेजी गई है। तो आप Anonymous-email का मतलब अच्छे से समझ गए होंगे। अब चलिए यह सीख लेते हैं कि आप एक Anonymous email किस प्रकार भेज सकते हैं।

Anonymous Email कैसे भेजें?


वैसे तो Online ऐसे बहुत से Websites हैं जिनकी मदद से आप Anonymous-email भेज सकते हैं, ऐसी ही एक बेवसाइट है Anonymousemail.me तो एक Anonymous-email भेजने के लिए आप नीचे दिए गए Steps को One-by-One follow करें –



  • अपने Browser को Open करें और Anonymousemail.me को Open करें।

  • आपके सामने एक वेबसाइट Open होगी जो नीचे दिए गए Image की तरह ही दिखेगी


Note: हो सकता है कि इस वेबसाइट के खुलने से पहले Security reasons की वजह से आपको I am not a robot कैप्चा को Solve करना पड़े और उसके बाद आपको इस वेबसाइट पर भेजा जाए।



अब आप इस वेबसाइट के द्वारा माँगे गए Information को निम्‍नानुसार Fill-up करें –


  • Name: यहाँ पर आप वो नाम लिखें जिसे आप Receiver को Display कराना चाहते हैं।

  • From (Email): यहाँ पर आप वो Email-Address लिखें जिसे आप Receiver को Display कराना चाहते हैं। आप चाहें तो कोई भी Fake email-address लिख सकते हैं।

  • To: यहाँ पर आप उस व्यक्ति का असली Email-Address टाईप करें जिसको आप यह Email भेजना चाहते हैं।

  • Reply To: अगर आप एक ऐसी Email भेज रहें हैं जिसका Receiver Reply भी कर सकता है और आप चाहते हैं कि वो Reply आपको मिल जाए तो आप यहाँ पर अपना असली Email-Address टाईप करें। जिस पर आप वो रिप्लाई मैसेज चाहते हैं।

  • Subject: यहाँ पर आप अपने Message का Subject लिखें।

  • अब आप अपना Message दिए गए बड़े Text-Box में Type कर सकते हैं।

  • अगर आप कोई फाइल Attach करना चाहते हैं तो दिए गए Option की मदद से कर सकते हैं पर ध्यान रहे कि फाइल साईज 2 MB से अधिक नहीं होनी चाहिए।

  • अब आप I am not a robot कैप्चा को Solve करें और फिर आखिर में Send-Email नामक लाल Button पर क्लिक करें।

  • Congrats! अब आपका Email Successfully भेज दिया गया है।



यह गेस्‍ट पोस्‍ट हमें ताशिफ इकबाल जी ने भेजी है, अगर आप भी इसी तरह की तकनीकी जानकारी रखते हैं आप चाहते हैं कि आपका लेख माय बिग गाइड पर प्रकाशित हो तो हमें आप हमें guest@mybigguide.com गेस्‍ट पोस्‍ट भेज सकते हैं। अधिक जानकारी के लिये देखें - आप भी बनें गेस्ट ब्लॉगर : करें गेस्‍ट पोस्‍ट

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क्या है मोबाइल रेडिएशन - What is Mobile Radiation

मोबाइल के अधिक प्रयोग प्रयोग से होने वाले नुकसानों में सबसे खतरनाक है मोबाइल रेडिएशन (Mobile Radiation) या मोबाइल विकिरण, मोबाइल रेडिएशन (Mobile Radiation) आपके स्‍वास्‍थ्‍य पर कितना दुष्प्रभाव डाल सकता है आप सोच भी नहीं सकते, तो आईये जानते हैं क्या है मोबाइल रेडिएशन - (What is Mobile Radiation) और इससे आपके शरीर पर क्‍या प्रभाव पडता है

क्या है मोबाइल रेडिएशन - What is Mobile Radiation



क्या है रेडिएशन - What is Radiation


रेडिएशन या विकिरण अंतरिक्ष की एक ऐसी ऊर्जा है जो तरंगों के रूप में चलती है, इन्‍हेंं आप रेडियो तरंगें (radio waves) भी कह सकते हैं ये मानवनिर्मित भी होती हैं और प्राकृतिक भी। सूर्य के प्रकाश में भी विकिरण होता है लेकिन हमारे वायुमंडल के कारण वह हमें हानि नहीं पहुॅचाता है, इसके अलावा टीवी का रिमोट, मोबाइल फोन और एक्स रे से भी रेडियेशन या विकिरण उत्‍पन्‍न होता है और जिस माइक्रोवेव में आप रसोई में खाना पकाते हैं उसमें भी रेडियो वेव्स से ही से खाना पकता है

जब आप एक्स रे करते हैं तो यहीं तरगें आपकी हड्डियों को छोडकर आपके शरीर के आर-पार निकल जाती है, अधिक माञा में या अधिक समय तक रेडिएशन के सम्‍पर्क में रहने से हमारे शरीर की कोशिकाओं पर बुरा प्रभाव पडता है
ऐसा नहीं कि रेडशयन हमेशा खतरनाक ही होता है आजकल कैंसर जैसे रोग को ठीक करने के लिए रेडियेशन थेरेपी का प्रयोग किया जाता है, इसमें हाई वोल्‍टेज किरणों से कैंसर की कोशिकाओं का समाप्‍त किया जाता है 



क्या है मोबाइल रेडिएशन - What is Mobile Radiation



मोबाइल फोन के इस्तेमाल के दौरान शरीर में जाने वाले रेडिएशन की मात्रा को स्पेसिफिक एब्सार्पशन रेट (एसएआर) कहते है,  एसएआर वह स्तर होता है, यह बताता है कि हमारा शरीर कितनी मात्रा में रेडिएशन को ग्रहण कर सकता है।

भारत में वर्तमान में स्पेसिफिक एब्सार्पशन रेट (एसएआर) के लिये मानक तय किया गया है जिसके तहत प्रत्‍येक मोबाइल फोन का स्पेसिफिक एब्जार्प्शन यानी एसआर रेट का स्‍तर 1.6 वॉट प्रति किग्रा से ज्‍यादा नहीं होना चाहिये अगर यह इससे ज्‍यादा है तो यह आपके शरीर के लिए नुकसानदेह है



अपने मोबाइल का रेडियशन स्‍तर यानि स्पेसिफिक एब्सार्पशन रेट (एसएआर) जॉचने के लिये आप *#07# डायल करें, यह एक USSD code कोड है और हां यदि आपके फोन में True Caller है तो उसे uninstall कर लें उसमें USSD code काम नहीं करते हैैं अपने फोन में डायलर से Code डायल करें और अगर आपके फोन का SAR levels 1.6 वॉट प्रति किग्रा (1.6 W/kg) से अधिक है तो तुरंत अपना फोन बदलें


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Thursday, 21 December 2017

क्‍या है सीजीआई और वीएफएक्‍स What is CGI and VFX

अगर आपने मूूवी बाहुबली-द बिगनिंग और बाहुबली द कॉन्क्लूज़न देखी हो तो आपको पूरी मूवी में आश्यर्चजनक सीन हर दो तीन मिनट में दिखाई देेते रहे होगें, इसलिये यह मूवी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भव्य फिल्म कही जा रही है और इसकी भव्‍यता की वजह है इसके विश्‍ााल और भव्‍य सेट जिसमें माहिष्मती का महल, आकाश छूता झरना या कालकेय केे साथ्‍ा युद्ध जिसमें वीएफएक्स और सीजीआई का प्रयोग किया गया गया है, आईये जानते हैं क्‍या होते हैं वीएफएक्स और सीजीआई स्पेशल इफेक्ट्स-

सीजीआई (CGI)


सीजीआई (CGI) का पूरा अर्थ है (कंप्यूटर ग्राफिक्स इमेज) इस तकनीक का प्रयोग आज कल की सभी फिल्‍मों में हो रहा है, वजह सीधी सी है  सीजीआई (CGI) के प्रयोग से किसी भी प्रकार का सेट तैयार कर सकते हैं, जो देखने में बिलकुल असली जैसा होता है, इसे फिल्‍म में इस तरह से प्रयोग किया जाता है कि आप असली नकली में अंतर नहीं कर सकते हैं साथ ही आपका सेट बनाने का हजारों लाखों का खर्चा बच जाता है, अगर आपने अवतार मूवी देखी हो तो पूरी की पूरी मूवी में कंप्यूटर ग्राफिक्स इमेज का प्रयोग किया गया है


सीजीआई (CGI) से क्‍या क्‍या कर सकते हैं


सीजीआई (CGI) से आप बडें बडें विशाल सेट बना सकते हैं, अतंरिक्ष जीव बना सकते हैं, डायनासोर बना सकते हैं, परमाणु विस्‍फोट बना सकते हैं और आपकी कल्‍पना शक्ति पर निर्भर करता है

वीएफएक्स (VFX)


कई बार फिल्मों के दृश्य देखकर हमारी सांसें थम जाती हैं। हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि कैसे शूट किया गया होगा, लेकिन यह कमाल है VFX तकनीक का वीएफएक्स (VFX) असल मेें होता है विजुअल इफेक्ट्स (Visual Effects) यह ऐसी तकनीक होती है जहां सीजीआई (CGI) से तैयार दृश्यों को वास्‍तविक दृश्यों से इस प्रकार जोडा जाता है कि दोनों में कोई अंतर दिखाई न दे, इसके इसके लिये ग्रीन या ब्‍लू स्‍क्रीन का प्रयोग किया जाता है, अब तो वीएफएक्स श्रेणी में ऑस्कर भी दिये जाते हैं लाइफ ऑफ पाई’ याद है ना जिसमें एक लडका नाव में एक शेर के साथ रहता है


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7 उपाय मोबाइल फोन रेडिएशन से बचने के - 7 Ways to Prevent Dangerous Cell Phone Radiation

मोबाइल के अधिक प्रयोग प्रयोग से होने वाले नुकसानों में सबसे खतरनाक है मोबाइल रेडिएशन (Mobile Radiation) या मोबाइल विकिरण, मोबाइल रेडिएशन (Mobile Radiation) आपके स्‍वास्‍थ्‍य पर कितना दुष्प्रभाव डाल सकता है आप सोच भी नहीं सकते, तो आईये जानते हैं 7 उपाय मोबाइल रेडिएशन (Mobile Radiation) से बचने के -

7 उपाय मोबाइल फोन रेडिएशन से बचने के - 7  Ways to Prevent Dangerous Cell Phone Radiation




  1. मोबाइल फोन का इस्‍तेमाल केवल जरूरी बातें करने के लिये किया जाये तो बेहतर है ज्‍यादा देर मतलब 10 मिनट से लेकर 30 मिनट या उससे ज्‍यादा बातें आपके स्‍वास्‍थ्‍य के लिये हानिकारक हो सकती हैं

  2. बात करते समय जितना हो सके मोबाइल को अपने शरीर से दूर रखें। हो सके तो स्‍पीकर फोन पर या ब्‍लूटूथ डिवाइस का प्रयोग करें

  3. कॉल करते समय और सुनते समय फोन को सिर से दूर रखें। मोबाइल फोन को किसी भी कीमत पर सिर से नहीं दबाएँ। खासतौर पर बच्चे मोबाइल रेडिएशन(विकिरण) की चपेट में ज्यादा आते हैं और सेल फोन की रेडिएशन से बच्चों में ल्यूकेमिया जैसी गंभीर बीमारियाँ भी होती हैं। बच्‍चों को तो फोन से दूर ही रखें

  4. कार में भी ब्लूटूथ पर बात करने के लिये अलग से स्‍पीकर आने लगे हैं जो आपको सुरक्षा के साथ सहूलियत भी देेेता है

  5. जितना हो सके लोगों से एसएमएस या सोशल मीडीया नेटवर्क जैसे व्‍हाट्सएप या फेसबुक जैसे मैसेंजर से चैट कर बात करें और अगर अच्‍छे वाईफाई जोन में हैं तो आप इंटरनेट कॉलिग का भी लाभ ले सकते हैं

  6. मोबाइल फोन को अपनी छाती यानि दिल के पास न रखें और पैंट की जेब में रखें। मोबाइल का रेडिएशन आपके हार्ट और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है।

  7. जब आप नहाकर निकलें और आपके बाल गीले हों तब भी फोन पर बात न करें क्यों कि पानी और धातु दोनों रेडियो तरंगों के बेहतरीन सुचालक हैं।


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क्‍या है वानाक्राई रैंसमवेयर वायरस - What is Wanna Cry 'ransomware' Virus

12 मई 2017 को दुनियाभर में कप्‍यूटरों पर एक वायरस का हमला हुआ है, जिससे भारत भी अछूता नहीं है इस वायरस का नाम है "वानाक्राई" यह एक रैंसमवेयर वायरस है, तो आईये जानते हैं क्‍या है 'वानाक्राई' रैंसमवेयर वायरस - What is Wanna Cry Ransomware Virus -

क्‍या है वानाक्राई रैंसमवेयर वायरस - What is Wanna Cry Ransomware Virus


सबसे पहले जानते हैं रैंसमवेयर "Ransomware" क्‍या होता है, इसका अर्थ है फिरौती मॉगने वाले कंप्‍यूटर प्रोग्राम, जिनके प्रभाव से आपके कंप्‍यूटर काम करना बंद कर देता है और कंप्‍यूटर को मुक्‍त करने के बदले फिरौती की रकम मॉगी जाती है और असल जिंदगी की तरह ही इसकी कोई गारंटी नहीं है कि फिरौती की रकम मिलने के बाद भी आपका कंप्‍यूटर वायरस से मुक्‍त हो जायेगा


इसी प्रकार का एक रैंसमवेयर "Ransomware" वायरस वानाक्राई (Wanna Cry) का विश्‍व भर के लगभग 100 देशों में के कंप्यूटरों पर Attack हुआ है इसे Ransomware Virus Attack कहा जा रहा है इस वायरस का अटैक जिन कंप्‍यूटरों पर हुआ है उन कंप्यूटर ने काम करना बंद कर दिया है, यह दुनिया सबसे बड़ा साइबर हमला बताया जा रहा है


जब Ransomware Virus Attack आपके Computer पर होता है तो आपकेे Computer की सभी फाइलें लॉक हो जाती है अगर तकनीकी भाषा में कहें तो encrypt हो जाती है इनक्रिप्ट का अर्थ है यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें data या information को secret codes में convert कर दिया है और उसे जब तक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है जबकि उसे de encrypt न किया जाये


चलिये समझते हैं आपके कंप्‍यूटर में पुराने गानों का कलेक्‍शन, आपकी शादी का वीडीयो आपके गेम्‍स आपके एमएस वर्ड में बनाई गयी जरूरी फाइलें, पावर पाइंट में बनाये गये जरूरी स्‍लाइड शो और पीडीएफ ईबुक सभी एक ऐसी फाइल में बदल जायेगें जिन्‍हें किसी भी software में खोला नहीं जा सकता है, जब तक कि इस Ransomware Virus को रिमूव न कर दिया जाये


इस वायरस के मामले में भी ऐसा ही है जो कंप्यूटर्स हैक हुए हैं उन्हें खोलने पर एक मैसेज दिखाई दे रहा है जिसमें कहा गया है कि यदि फाइल वापस पाना चाहते हो तो पैसे चुकाने होंगे, यानि फाइलों को encrypt किया गया है और de encrypt करने के लिये पैसे की मॉग की जा रही है यानि फिरौती मॉगी जा रही है

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क्लाउड कम्प्यूटिंग और उसके प्रकार (Types Of Cloud Computing)

Cloud Computing के बारे में हम आये दिन News और Internet पर पढते रहते हैं, Cloud Computing एक बहुत ही Useful Technology है, आईये जानते हैं क्‍या है क्लाउड कम्प्यूटिंग (Cloud Computing) और यह कितने प्रकार की होती है - क्लाउड कम्प्यूटिंग और उसके प्रकार (Types Of Cloud Computing)

क्लाउड कम्प्यूटिंग और उसके प्रकार Types Of Cloud Computing


इससे आप अपनी सभी जरूरी files को जैसे Documents, photos, music, videos etc. को Computer के साथ साथ Internet पर भी Save करके रख सकते हो, जैसे बादल कहीं से पानी लेते हैं और कहीं पे भी बरसा देते हैं उसी आधार पर है Cloud Computing यह भी नेेेटवर्क के माध्‍यम से काम करती है, आईये जानते हैं यह कैसे काम करती है


Cloud Computing के लिये बडी बडी कंंपनियों जैसे Google या microsoft बहुत ही विशाल डाटा सेेंटर (Data center) बनाती है डाटा सेेंटर (Data center) वह जगह होती है जहां एक बहुत बडें पैमाने पर डाटा (जैसे आपके वीडीयो, फोटो या डाक्‍यूमेंट) काे स्‍टोर किया जाता है यह आपस में एक नेटवर्क से जुडे रहते हैं और कहीं भी जरूरत पडने पर इंटरनेट के माध्‍यम से वहां तुरंत डाटा का पहुंचा दिया जाता है, उदाहरण के लिये फेसबुक डाटा सेंटर (Facebook Data Center) को ले लीजिये यह भी क्‍लाउड से जुडा है आपके द्वारा फेसबुक अपलोड किये जाने वाले फोटो और वीडीयो यहीं सुुुुरक्षित रहते हैैं और आप इस डाटा का उपयोग फेसबुक की एप्‍लीकेशन या वेबसाइट के जरिये दुनियां में किसी भी स्‍थान पर कर सकते हैं बस आपको चाहिये फेसबुक की एप्‍लीकेशन और यूजर आईडी पासवर्ड


लेकिन छोटी कंपनीया जिनके पास इतना पैसा नहीं है कि वह अपना खुद का डाटा सेंटर बना सकें तो वह क्‍लाउड के माध्‍यम से इंटरनेट पर हार्डवेयर और स्‍पेस किराये पर ले सकते हैं, उदाहरण के लिये अगर अाप जीमेल पर अपनी ईमेल आईडी बनाते हैं तो आपको गूगल की तरफ से 15GB का क्‍लाउड स्‍टोरेज फ्री दिया जाता है, लेकिन अगर आपको 15GB से ज्‍यादा की आवश्‍यकता है तो आप इसे गूगल क्‍लाउड से किराये पर ले सकते हैं Google Drive पर एक ईमेल आईडी पर 30 TB तक का स्‍पेस किराये के लिये उपलब्‍ध है 30 TB का मासिक किराया है 19500 रू0 महीना, आप पूरी लिस्‍ट यहां से चैक कर सकते हैं

Cloud Computing का अर्थ सिर्फ डाटा अपलोड करना ही नहीं है, गूगल ने Google Drive के माध्‍यम से Cloud पर कई सारी एप्‍लीकेशन भी उपलब्‍ध करा रखीं हैं जिन्‍हेें आप बिना अपने कंम्‍यूटर में इस्‍टॉल किये सीधे अपने ब्राउजर में चला सकते हैं ये एप्‍लीकेशन हैं - Google Docs, Google Sheets, Google Slides, Google Forms, google drawings और google sites, इसके अलावा अगर आपके कंप्‍यूटर में फोटोशॉप नहीं चल रहा है तो आप Cloud Computing की सहायता से उसे भी चला सकते हैं, लेकिन Cloud Computing के लिये आपके पास एक अच्‍छा इंटरनेट कनेक्‍शन होना जरूरी है

अब बात करते हैैं Cloud Computing कितने प्रकार की हाेती है - अभी वर्तमान में Cloud Computing चार प्रकार की है -

  1. प्राइवेट क्लाउड कंप्यूटिंग(Private Cloud Computing) - प्राइवेट क्‍लाउड का उदाहरण है Google Drive जहां आपके सारे डाक्‍यूमेंट आपके ईमेल आईडी और पासवर्ड से सुरक्षित रहते हैं, इन्‍हें आपके अलावा और कोई उपयोग नहीं कर सकता है यह कुछ हद तक ज्यादा सुरक्षित माना जाता है

  2. पब्लिक क्लाउड कंप्यूटिंग (Public Cloud Computing) - पब्लिक क्लाउड हर सामान्‍य व्‍यक्ति के लिये उपलब्‍ध रहता है, उदाहरण के लिये अगर किसी साइट पर कोई ईबुक फ्री डाउनलोड के लिये उपलब्‍ध करायी गयी हो और आप उसे एक ही क्लिक में बिना अकांउट बनाये डाउनलोड कर पाते हों पब्लिक क्लाउड थोड़ा कम सुरक्षित माना जाता है

  3. कम्युनिटी क्लाउड कंप्यूटिंग (Community Cloud Computing) -कम्युनिटी क्लाउड कंप्यूटिंग केवल एक ग्रुप के सदस्‍यों के लिये उपलब्‍ध्‍ा रहती है, इसके अलावा और कोई बाहरी व्‍यक्ति इस डाटा का इस्‍तेमाल नहीं कर सकता है, उदाहरण के लिये किसी कंपनी के कर्मचारी ही केवल उस कंपनी के साइट पर उपलब्‍ध डाटा का इस्‍तेमाल कर सकते हैं या किसी स्‍कूूूल द्वारा बनायी गयी वेबसाइट और उस पर उपलब्‍ध सामग्री का उपयोग केवल उस स्‍कूल या संस्‍था के छाञ ही कर सकते हैं

  4. हाइब्रिड क्लाउड कंप्यूटिंग (Hybrid Cloud Computing) - हाइब्रिड क्लाउड में पब्लिक क्लाउड और प्राइवेट क्लाउड दोनों का इस्‍तेमाल किया जाता है, ऐसे  किसी साइट पर कुछ सामग्री सार्वजनिक उपलब्‍ध हो और कुछ सामग्री केवल रजिस्‍टर्ड यूजर्स के लिये ही उपलब्‍ध हो ऐसे क्‍लाउड को हाइब्रिड क्लाउड कहते हैं


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क्‍या है ब्‍लू व्‍हेल गेम - What is Blue Whale Game

ब्लू व्हेल गेम (Blue Whale Game) का नाम पहली बार सुनने में ऐसा लगता है जैसे यह कोई छोटे बच्चों का गेम है जिसमे कोई प्यारी सी ब्लू व्हेल होगी लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यही ब्लू व्हेल गेम (Blue Whale Game) लोगों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर रहा है और इसी वजह से ब्लू व्हेल गेम सुसाइड गेम के नाम से भी जाना जा रहा है तो आखिर क्या है ब्लू व्हेल गेम में ऐसा जो लोगों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर देता है जानने की कोशिश करते हैं क्‍या है ब्‍लू व्‍हेल गेम - What is Blue Whale Game.

क्‍या है ब्‍लू व्‍हेल गेम - What is Blue Whale Game


ब्लू व्हेल गेम (Blue Whale Game) इंटरनेट पर साधारण तौर पर डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध नहीं है, ब्लू व्हेल गेम को केवल डार्क वेब डाउनलोड किया जा सकता है ब्लू व्हेल गेम (Blue Whale Game) पूरे 50 दिन तक खेला जाता है जब आप इसे खेलना शुरू करते हैं तो हर दिन के लिए एक टॉस्क दिया जाता है गेम का एडमिन आपको रोज टॉस्क आपके बारे में जानकारी देता है कि आपको अगले 50 दिन तक क्या-क्या करना है ब्लू व्हेल गेम (Blue Whale Game) के अगली स्‍टेज जाने के लिए आपको टॉस्क  पूरा करना होता है और उसकी सेल्फी खींचकर अपने दोस्तों के साथ शेयर करनी होती है शुरुआती दिनों में सरल टॉस्क दिए जाते हैं जैसे कागज पर ब्लू व्हेल की तस्वीर बनाना डरावनी फिल्में देखना, रात केअंधेरे में किसी भयानक जगह पर जाना लेकिन जैसे-जैसे कीमती फाइनल स्टेज आती है और टॉस्क खतरनाक होते जाते हैं


ब्लू व्हेल गेम (Blue Whale Game)  खेलने वाले यूजर को अपने हाथ पर चाकू से व्हेल मछली गोदनी होती है ब्लू व्हेल गेम के अंतिम दिन आपको किसी उनकी बिल्डिंग से छलांग लगाने के लिए बोला जाता है गेम के एडमिन द्वारा प्लेयर को इस तरीके से प्रेरित किया जाता है कि अगर वह टॉस्क  पूरा नहीं कर पाएगा तो वह डरपोक और कायर कहलाएगा


ब्लू व्हेल गेम (Blue Whale Game)  के चक्कर में पूरी दुनिया में लगभग ढाई सौ से ज्यादा बच्चों ने खुदकुशी कर ली है अभी हाल ही में मुंबई में एक 14 साल के बच्चे हैं इसी ब्लू व्हेल गेम (Blue Whale Game)  की वजह से आत्महत्या की है


ब्लू व्हेल गेम (Blue Whale Game)  को 2013 में रूस के फिलिप बुडेकिन नाम के व्यक्ति ने बनाया था जो अभी फिलहाल जेल में है वह मनोवैज्ञानिक रूप से गेम खेलने वाले को अपने कंट्रोल में कर लेता है यहां तक कि वह खिलाड़ी का फोन भी हैक कर लेता है और यदि खिलाड़ी से खेलना छोड़ना चाहें तो वह उसे मारने तक की धमकी देता है और ब्लैकमेल करता है वह इस तरीके से प्रेरित करता प्रेरित करता है यदि आप इस गेम को पूरा नहीं कर पाए तो आप धरती पर रहने लायक नहीं है आप को जीने का कोई अधिकार नहीं है


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डार्क इंटरनेट क्‍या है - What is Dark Internet

ब्‍लू व्‍हेल गेम आने के बाद आपने डार्क इंटरनेट (Dark Internet ), डीप वेब (Deep web) और डार्क वेब (Dark web) जैसे शब्‍द सुने होगें और जानने की जिज्ञासा भी रही होगी कि आखिर क्‍या है ये डार्क इंटरनेट (Dark Internet ), डीप वेब (Deep web) और डार्क वेब (Dark web) क्‍या है तो आईये जानने की कोशिश करते हैं कि डार्क इंटरनेट क्‍या है - What is Dark Internet

डार्क इंटरनेट क्‍या है - What is Dark Internet


अगर इंटरनेट (Internet ) की बात की जाये तो आप तुरंत ही बतायेंगे कि आप इंटरनेट को अच्‍छे से जानते हैं, आप गूगल, फेसबुक, यूट्यूूब और इसके अलावा लाखों ऐसी वेबसाइट हैं जिन्‍हें अाप और आपके साथ दुनिया भर के लोग हर रोज इस्‍तेमाल करते हैं, लेकिन अगर हम कहें दुनिया भर के लोग इंटरनेट का जो हिस्‍सा इस्‍तेमाल करते हैं वह केवल पूरे इंटरनेट का केवल 5 प्रतिशत ही है तो शायद कई लोग यकीन नहीं मानेगें लेकिन ये सच है आप साधारण ताैर इंटरनेट को जो हिस्‍सा इस्‍तेमाल करते हैं या सीधे शब्‍दों में कहें तो आप इंटरनेट के जिस हिस्‍से तक पहुॅच रखते हैं वह Public Internet है इसेे Surface web भी कहते हैैं वह केवल 5 प्रतिशत ही है, अब प्रश्‍न है कि बाकी 95% इंटरनेट कौन प्रयोग करता है और वह कहां हैं तो आईये जानने की कोशिश करते हैं

इंटरनेट को access कर पाने के अनुसार उसे तीन भागों में बॉटा गया है -



  1. सर्फेस वेब (Surface Web)

  2. डीप वेब (Deep Web)

  3. डार्क वेब (Dark Web)


क्‍या है सर्फेस वेब (Surface Web)



सर्फेस वेब (Surface Web) इंटरनेट का वह भाग है जिसे आप आमतौर पर इस्‍तेमाल करते हैं इसके लिये आपको किसी special permission की अावश्‍यकता नहीं हाेती है, इन वेेबपेज पर पहुॅचने के लिये आप search engine का सहारा लेते हैं इस दूसरे तरीके से देखें तो सर्फेस वेब (Surface Web) को Google और Bing जैसे search engine इंडेक्स करते हैं और आपके द्वारा कोई भी क्‍वेरी सर्च करने पर Result के तौर पर दर्शाते हैं और ज्‍यादातर लोग इन्‍हीं सर्च इंजन का प्रयोग कर सर्फेस वेब (Surface Web) की इन वेबसाइट पर पहुॅचते हैैं, लेकिन उन पेज का क्‍या जो Google और Bing जैसे Search Engine इंडेक्स नहीं करते हैं वही होता है डीप वेब (Deep Web) और डार्क वेब (Dark Web) चलिये समझने की काेशिश करते हैं

क्‍या है डीप वेब (Deep Web)


क्‍या आप किसी के बैंक खाते की जानकारी को इंटरनेट पर सर्च करते हैं या आप किसी वेेेबसाइट का एडिमिन पैनल देख्‍ा सकते है, क्‍या ईमेल को गूगल पर सर्च किया जा सकता है या फिर ब्‍लॉगर या वर्डप्रेस की ड्राफ्ट पोस्‍ट को इंटरनेट पर सर्च किया जा सकता है ? तो इसका सीधा जबाब होगा नहीं, इसके लिये आपको उस पेज के एडमिन की परमीशन की आवश्‍यता होगी साथ ही आपको Access करने के लिए password का पता होना भी जरूरी है तभी आप उस जानकारी को Access कर पायेगें यानि डीप वेब (Deep Web) के अन्‍तर्गत internet के वे सभी Web Pages आते हैं, जिन्‍हे Search Engine में सर्च नहीं कर पाते हैं लेकिन ये लीगल होते हैं, डीप वेब (Deep Web) को Invisible Web के नाम से भी जाना जाता है, इसमें अन्‍तर्गत जो पेज आते हैं वह हैं ब्लॉग प्लेटफार्म, ड्राफ्ट पेज, साइंटिफिक रिसर्च, एकेडमिक और कॉर्पोरेट डाटाबेस, गवर्नमेंट पब्लिकेशन्स, इलेक्ट्रॉनिक बुक्स, ईमेल, डिरेक्टरी आदि



क्‍या है डार्क वेब (Dark Web)


कुछ सालाें पहले डीप वेब (Deep Web) अाैर डार्क वेब (Dark Web) काे एक ही माना जाता था लेकिन गैर कानूनी गतिविधियों वजह से इसे दो हिस्‍सों डीप वेब (Deep Web) अाैर डार्क वेब (Dark Web) में विभाजित कर दिया गया डार्क वेब (Dark Web) डीप वेब (Deep Web) का ही हिस्‍सा है, इसका प्रयोग इंटरनेट पर सभी प्रकार के गैर कानूनी काम करने के लिये किया जाता है जैसे ड्रग्स खरीदना व बेचना, किसी भी तरह का ख़तरनाक से ख़तरनाक हथियार खरीदना व बेचना, मानव तस्करी, ATM Debit/Credit Card की जानकारी चुराकर किसी को बेचना आदि, डार्क वेब (Dark Web) पेज पर आम तरीकों से नहीं पहुॅचा जा सकता है, यहां पहुुॅुचने के लिये लोग एक अलग ब्राउजर का इस्‍तेमाल करते हैं, जिसे टॉर कहते हैं, TOR एन्क्रिप्शन टूल से डार्क वेब (Dark Web) पेज को एनक्रिप्ट किया जाता है ये साइट छुप जाती है, सर्च इंंजन इसे इंडेक्स नहीं पाते और यह सिर्फ टॉर ब्राउजर पर ही दिखती हैं


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क्या है टॉर ब्राउजर - What is Tor browser in Hindi

हमने ब्‍लू व्‍हेल गेम और डार्क वेब (Dark Web) की जानकारी में टॉर (TOR) के बारे में उल्‍लेख किया था, इसमें हमने बताया था कि कैसे लोग डार्क वेब (Dark Web) में अपनी पहचान छुपाने के लिये टॉर (TOR) का इस्‍तेमाल करते हैं तो आईये जानते हैं आखिर क्या है टॉर - What is TOR in Hindi

क्या है टॉर ब्राउजर - What is Tor browser in Hindi


क्‍या है टॉर - What is TOR


टॉर (TOR) द ऑनियन रूटर इंटरनेट का एक प्रकार है, इसमें एक खास किस्म फ़ायरफॉक्स ब्राउज़र की सहायता से इंटरनेट पर बिना ट्रैक हुए अनॉनिमस (अपनी पहचान छिपाकर) ब्राउज़ किया जाता है, टॉर (TOR) को अमरीकी नेवी रिसर्च लैब ने बनाया था

इंटरनेट पर आपकी पहचान क्‍या होती है ?


असल में जब आप अपने फोन या कम्‍प्‍यूटर को इंटरनेट से जोडते हैं तो आपके डिवाइस को इंटरनेट पर पहचाने के लिये एक खास कोड दिया जाता है, जिससे आपकी लोकेशन और नेटवर्क का पता चलता है। इस कोड को आईपी एड्रेस (IP address) या इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस (Internet Protocol Address) कहते हैं।


टॉर क्‍या काम करता है


किसी साइट को खोलने पर जो डिजिटल चिह्न, जिन्‍हें आप कुकी कहते हैं उन्हें समझ पाना इतना कठिन बना देता है, यानि यह उन्‍हें इन्स्क्रिप्ट कर देता है जिससे उन्‍हें इंटरनेट पर ट्रैक नहीं किया जा सकता है और टॉप पर खुलने वाली साइट .COM के बजाय .Onion में ओपन होती है .Onion टॉप लेबल डोनेम का एक प्रकार है जिसका प्रयोग Anonymous Hidden Service देने के किया जाता है, इस प्रकार की वेबसाइट केवल टॉर ब्राउजर पर ही ओपन होती हैं कोई सर्च इंजन जैसे गूगल और बिंंग इन्‍हें इंडेक्स नहीं कर पाता है और Tor browser के नेटवर्क से connect होने के बाद ही आपकी असली पहचान आईपी एड्रेस (IP address) को छुपता है


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प्रोग्रामिंग भाषा अनुवादक क्‍या है - What Is Programming Language Translator in Hindi


प्रोग्रामिंग भाषा अनुवादक ( Programming Language Translator ) ऐसे सॉफ्टवेयर होते हैं जो प्रोग्रमिंंग भाषाओं में लिखे गये प्रोग्रामों का अनुवाद बिना कोड को बदले कंप्‍यूटर की मशीनी भाषा ( Machine language ) में करते हैं आईये प्रोग्रामिंग भाषा अनुवादक ( Programming Language Translator ) बारे में और जानते हैं -



प्रोग्रामिंग भाषा अनुवादक क्‍या है - What Is Programming Language Translator in Hindi



सबसे पहले समझते हैं मशीनी भाषा (Machine language )किसे कहते हैंं




मशीनी भाषा ( Machine language ) वह भाषा होती है जिसमें केवल 0 और 1 दो अंको का प्रयोग होता है यह कंप्‍यूटर की आधारभूूत भाषा होती है जिसे कंप्‍यूटर सीधे सीधे समझ लेता है, मशीनी भाषा बायनरी कोड में लिखी जाती है जिसके केवल दो अंक होते हैं 0 और 1 चूंकि कम्प्यूटर मात्र बाइनरी संकेत अर्थात 0 और 1 को ही समझता है और कंप्‍यूटर का सर्किट यानी परिपथ इन बायनरी कोड को पहचान लेता है और इसे विधुत संकेतो ( Electrical signals ) मे परिवर्तित कर लेता है इसमें 0 का मतलब low या Off है और 1 का मतलब High या On


भाषा अनुवादक ( Language Translator ) की जरूरत क्‍यों होती है


मशीनी भाषा ( Machine language ) के अतिरिक्‍त सभी प्रोग्रामिंग भाषा ( Programming Language ) में 0 और 1 के अलावा अन्‍य अंकाेें और शब्‍दोंं का प्रयोग होता है लेकिन कंप्‍यूटर सीधे इस पढ नहीं पाता है,  लेकिन भाषा अनुवादक ( Language Translator ) इन अंकों और शब्‍दों को मशीनी भाषा अथवा बायनरी अंकों में बदल देता है ताकि कंप्‍यूटर इस आसानी से पढ सके और प्रोग्राम के अनुसार काम कर सके 

प्रोग्राम अनुवादक के प्रकार ( Types of Program Translators )


प्रोग्रामिंग भाषा अनुवादक ( Programming Language Translator ) तीन प्रकार के होते हैं -


  1. असेम्बलर ( Assembler )

  2. कम्पाइलर (Compiler)

  3. इन्टरप्रेटर


सीधेे सीधे मशीनी भाषा में प्रोग्राम क्‍यों नहीं लिखे जाते हैं


चूंकि मशीनी भाषा में किसी भी प्रोग्राम को लिखना बहुत कठिन है, अगर आपको मशीनी भाषा में यानि बायनरी में लिखना हो - I LOVE MYBIGGUIDE.COM

तो आपको यह मशीनी भाषा ( Machine language ) में कुछ ऐसा लिखना होगा -

01001001 00100000 01001100 01001111 01010110 01000101 00100000 01001101 01011001 01000010 01001001 01000111 01000111 01010101 01001001 01000100 01000101 00101110 01000011 01001111 01001101


आशा है आप समझ गये होगें :)


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Wednesday, 20 December 2017

क्‍या है कॉल ड्रॉप - What is Call Drop in Hindi

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानि (TRAI) ने कॉल ड्राप (Call Drop) हाेने पर टेलीकॉम कंपनियों पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने के दिशा निर्देश जारी किये हैं, तो आखिर ये कॉल ड्राप (Call Drop) की समस्या क्या है, जिस पर इतना बडा जुर्माना लगाने की जरूरत पडी तो आईये जानने की काेशिश करते हैं कि क्‍या है कॉल ड्राप - What is Call Drop in Hindi



क्‍या है कॉल ड्रॉप - What is Call Drop in Hindi


क्‍या है कॉल ड्रॉप (Call Drop)



शर्मा जी और उनके दाेस्‍त के बीच में बात चल रही थी, तभी अचानक नेटवर्क में दिक्‍कत आने की वजह से फोन कट गया, दोनों ही समझ नहीं पाये और दोबारा फोन लगाया 20-30 सेकेण्‍ड और बात हुई और फिर वही परेशानी हुई तीसरी बार फोन लगाया तब जाकर आपकी बात पूरी हो पायी, लेकिन वह दोनों ही समझ नहीं पाये कि जो परेशानी उनके साथ हुई थी उसे कॉल ड्राप (Call Drop) कहते हैं, "यानि जब दो लोग आपस में फ़ोन पर बात कर रहें हों और उनके फ़ोन काटे बिना ही नेटवर्क में दिक्कत की वजह से फ़ोन कट जाता है तो उसे कॉल ड्राप ( call drop ) कहा जाता है"


क्‍यों होती है कॉल ड्राप (Call Drop)


आपकी मोबाइल नेटवर्क कंंपनी की वजह से आप अपने शहर में देख ही रहे होगें कि कहीं नेटवर्क बहुत अच्‍छा आता है चाहे आप 7वीं मंजिल पर हों या अंडर ड्राउंड में लेकिन कहीं-कहीं आपके घर के बाहर भी नेटवर्क नहीं मिलता है ताे ऐसा होता क्‍यों है आईये जानते हैं आपके इलाके में जो मोबाइल टावर है उसकी एक क्षमता होती है इसे बैंडविड्थ (Bandwidth) कहते हैं और यह बैंडविड्थ (Bandwidth) उसे इलाके के मोबाइल कनेक्शन की संख्या के आधार पर बढाई या घटाई जा सकती हैं, अब मान लीजिये आपके मोबाइल टावर की बैंडविड्थ क्षमता 10000 मोबाइल के कनेक्शन झेल सकती है, लेकिन उस इलाके में 15000 फोन कनेक्शन हैं तो मोबाइल टावर के बैंडविड्थ (Bandwidth) से मोबाइल फोन कनेक्शन के बैंडविड्थ अधिक हो जाते हैं और टावर के पास जितनी बैंडविड्थ (Bandwidth)  होती है उस से अधिक इस्तेमाल होने लगती है और इसका परिणाम होता है कॉल ड्राप (Call Drop ) यानि फ़ोन का बीच में अपने आप कट जाना

मोबाइल नेटवर्क कंंपनी क्‍यों दोषी है


मोबाइल नेटवर्क कंपनियां केवल उन्‍‍हीं इलाकों में अपने मोबाइल नेटवर्क को लेकर सजग रहती है जिन इलाकों से उसे अधिक आय होती है और वहीं मोबाइल टावर की बैंडविड्थ क्षमता बढाने पर जोर देती है लेकिन जिन इलाकों से आय कम हैं उस ओर वह ज्‍यादा ध्‍यान नहीं देेेेती हैं और कॉल ड्राप (Call Drop ) होती है

क्‍या है कॉल ड्रॉप (Call Drop ) के नियम


कॉल ड्रॉप (Call Drop ) के संशोधित नियमों के अनुसार एक मोबाइल नेटवर्क सर्किल के 90 प्रतिशत मोबाइल टावरों पर कॉल ड्रॉप की का प्रतिशत 2 प्रतिशत से अधिक नहीं हाेना चाहियेे और अगर नेटवर्क की बहुत खराब है तो भी कॉल ड्रॉप की दर 3 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए और इस पर TRAI का कहना है कि मोबाइल कंपनीज ने उपभोक्ताओं की संख्या को देखते हुए टावर नहीं लगाये है जिसकी वजह उपभोक्ता को बड़ा नुकसान होता है जबकि मोबाइल कंपनीज होने वाली आमदनी की तुलना में अपने सेवा स्तर को सुधारने के लिए निवेश बहुत कम कर रही है

क्‍या है कॉल ड्रॉप (Call Drop) का मुद्ददा


TRAI ने यह प्र‍स्‍तावित किया है कि अगर मोबाइल कंपनियां कॉल ड्राप की दर को कम नहीं कर पाती है तो उन्हें हर उपभोक्ता को प्रति कॉल ड्रॉप (Call Drop) एक रूपये रिफंड देना होगा और यह अधिकतम तीन रूपये हो सकता है लेकिन मोबाइल कंपि‍नियां कहती हैं कि अगर उन्‍हें मुआवजा देना पडता है तो उन्‍हें बहुत घाटा होगा क्‍योंकि कॉल ड्रॉप (Call Drop) होने की वजह केवल तकनीकी कारण है तो कॉल ड्राप (Call Drop) पर मुआवजा देना संभव नहीं है


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Who owns the INTERNET ? इंटरनेट का मालिक कौन ?

अगर आप अपने फोन में आज INTERNET इस्‍तेमाल कर रहे होगें तो आप मन में कभी ना कभी यह सवाल तो आया होगा कि INTERNET का मालिक कौन है, लेकिन बहुत से INTERNET यूजर अपने इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) को ही इंटरनेट का मालिक समझते हैं जैसे वह अगर जियाे को इंटरनेट इस्‍तेमाल कर रहे हैं तो उनके लिये रिलायंस जिओ ही इंटरनेट का मालिक है लेकिन ऐसा नहीं हैं इस पोस्‍ट में हम जानने की कोशिश करेंगे कि कौन है इंटरनेट का मालिक Who owns the INTERNET ?

इंटरनेट का मालिक कौन ? Who owns the INTERNET ?




इंटरनेट कब शुरू हुुुुआ ?




1969 में अमेरिका के रक्षा विभाग में एडवांस रिसर्च प्रोजेक्‍ट एजेंसी (ए0आर0पी0ए0) नाम का नेटवर्क लांच किया गया, जो युद्ध के समय एक दूसरे को गोपनीय सूचना भेजने के प्रयोग में लाया गया। 1972 में रेटॉमलिसंन ने पहला ईमेल संदेश भेजा और जैसे जैसे ईमेल के जरिये सूचना भेजने के फायदों का पता चलता गया इसका प्रयोग भी बढता गया और इस तरह यह नेटवर्क लोकप्रिय हो गया।

इंटरनेट क्‍या है ?


इंटरनेट एक प्रकार का नेटवर्क है जो दो या दो से अधिक कंप्‍यूटरों को एक दूसरे से कनेक्‍ट करता है, जिसकी सहायता से आप कोई भी सूचना एक कंप्‍यूटर से दूसरे कंप्‍यूटर तक कुछ ही सेकेण्‍ड में पहुॅचा सकते हैं, इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटर क्लाइंट और सर्वरों का इस्तेमाल कर दुनिया भर में एक दूसरे को Data Tranfer करते है। आज केवल भारत में ही 1 करोड से ज्‍यादा व्‍‍यक्ति इन्‍टरनेट से प्रयोग करते हैं।



इंटरनेट आप तक कैसे पहुॅचता है ?


पूरी दुनिया में तेज गति से इंटरनेट पहुॅचाने के लिये फाइबर ऑप्टिक केबल का इस्‍तेमाल किया जाता है, जो समुद्र के नीचे बिछाई जाती है, इन्‍हीं फाइबर ऑप्टिक केबल की सहायता से पूरी दुनिया में इंंटरनेट पहुॅचाया जाता है

फाइबर ऑप्टिक केबल ही क्‍यों ?


फाइबर ऑप्टिक केबल की डेटा ट्रान्सफर स्पीड भी बाकी केबल्स से अधिक होती है, उसका कारण्‍ा है कि फाइबर ऑप्टिक केबल को छोडकर और सभी केबल में डाटा का संचार इलेक्ट्रिक करंट के रूप में किया जाता है लेकिन फाइबर ऑप्टिक केबल में डाटा ट्रांसमिशन् इलेक्ट्रिक करंट के रूप में नहीं बल्कि प्रकाश के रूप में किया जाता है और फाइबर ऑप्टिक केबल के कारण ही 1 सेकेण्‍ड से कम समय में आप Google.com ओपन कर पाते हैं जबकि उसका सर्वर अमेरिका में है आपको जानकार आश्‍चर्य होगा कि इंटरनेट के लिये समुद्र में 8 लाख किलोमीटर से ज्‍यादा लम्‍बाई के फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाये गये हैं

इंटरनेट आप तक कौन पहुॅॅॅचाता है ?


जैसा कि हमने बताया है फाइबर ऑप्टिक केबल द्वारा आप तक इंटरनेट पहुॅचाया जाता है लेकिन आप तो जीयो, आयडिया या एयरटेल का इंंटरनेट इस्‍तेमाल करते हैं या कुुुछ लोग अपने शहर से लोकल इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) से इंटरनेट कनेक्‍शन लेते हैं, चलिये समझते हैं, इन तीनों लोगों की वजह से ही इंटरनेट आप तक पहुॅचा तो इसी आधार पर इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा है -


  • TEAR 1 - वह इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) हैं जिन्‍होंने समुद्र में फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाये हैं, इन्‍हें Tier 1 networks के नाम से जाना जाता है, इसमें भारत की कंम्‍पनी Tata Communications भी शामिल है

  • TEAR 2 - वह इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) हैं जो Tier 1 Networks से इंटरनेट सेवा लेते हैं और आप तक पहुॅचाते हैं, जैसे जियो, आयडिया, वोडाफोन आदि

  • TEAR 3 - ये वो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) है तो TEAR 2 से इंटरनेट सेवा लेते हैं और अपने लोकल ऐरिया में सर्विस देते हैं इनके पास लिमिडेट कनैक्‍शन देने का अधिकार होता है जैसे Tikona


क्‍या इंटरनेट फ्री है ?


जी हॉ इंटरनेट बिलकुल फ्री है, लेकिन जो अापसे चार्ज लिया जाता है वह आप तक उसको लाने में जो खर्चा होता है उसका लिया जाता है अगर इंटरनेट का चार्ज होता है तो आपको Google.com खोलने के अलग पैसे देने होते और mybigguide.com देखने के अलग तो भगवान शुक्र है इंटरनेट फ्री है



कौन है इंटरनेट का मालिक Who owns the INTERNET ?


तो इन सवाल का जबाब साफ है इंटरनेट पर किसी का अधिकार नहीं है यानि इंटरनेट का मालिक कोई नहीं सब एक दूसरे के सहयोग से आप तक इंटरनेट सेवा पहुॅचाते हैं, इसीमें सबका फायदा है

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सेल्फ़ी क्या है? What is selfie in hindi

दुनिया भर में शायद ही कोई मोबाइल फोन यूजर होगा जिसने सेल्फी का नाम ना सुना हो, युवा तो सेल्फ़ी के पीछे पागल हैं, सेल्फी का क्रेज हर उम्र के लोगों में दिखाई देता है, ये ऐसा दौर है जब सेल्फ़ी के लिये स्‍पेशल कैमरा फोन बनाये जा रहे हैं तो क्‍या आप जानना नहीं चाहेगें कि ये सेल्फ़ी शब्‍द अचानक से कहां से आया सेल्फ़ी का इतिहास क्‍या है और साथ ही सेल्फी के फायदे और नुकसान क्‍या है तो आईये जानते हैं सेल्फ़ी क्या है? What is selfie

सेल्फ़ी क्या है? What is Selfie



सेल्फी का अर्थ है एक ऐसी तस्‍वीर जो अपने कैमरे, स्‍मार्टफोन या वेबकैम से खुद ही खीची हो, तो सेल्‍फी का मतलब आप जानते ही हैं खुद ही अपनी तस्वीरें खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड और शेयर करने का चलन 'सेल्फी' नाम से जाना जाने लगा है लेकिन क्‍या आपको पता ये श्‍ाब्‍द चलन में कब से आया

पहली 'सेल्फी' कब खींची गयी


आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि पहली सेल्‍फी लगभग 150 साल पहले खींची गयी थी और इसका नाम सेल्‍फी नहीं सेल्फ पोट्रेट (Self portraits) हुआ करता था यानि खुद अपनी तस्‍वीर बनाना, पहली सेल्‍फी जब खींची गयी तो आज की तरह जबदस्‍त कैमरे नहीं थे यह बहुत ही साधारण दिखने वाली ब्‍लैक एण्‍ड व्‍हाइट सेल्‍फी या कहें तो सेल्फ पोट्रेट थी जो स्वीडिश आर्ट फोटोग्राफर ऑस्कर गुस्तेव रेजलेंडर अपनी कैमरे से खींची थी

सेल्फ़ी शब्‍द का इतिहास  - History of selfie



  • 2002 पहली बार सेल्फ़ी शब्‍द का इस्तेमाल आस्ट्रेलियाई वेबसाइट ने किया था।

  • 2003 सोनी एरिक्सन ने पहला फ्रंट फेंसिंग कैमरा Z1010 मोबाइल लांच किया

  • 2004 से ही फोटो शेयरिंग वेबसाइट्स फ्लिकर्स पर सेल्फी को हैशटैग के साथ इस्तेमाल किया जाता

  • 2012 तक सेल्फ़ी शब्‍द का इस्तेमाल बहुत होता था

  • 2013 में सोशल मीडिया पर 'सेल्फ-पोट्रेट' फोटोग्राफ के शार्टकट् के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाने लगा और तब से यह शब्द आम बोलचाल की भाषा में शामिल हुआ और बहुत लोकप्रिय हुआ

  • 2013 में ही 'सेल्फी' शब्‍द को ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द इयर बना गया


सेल्फी अभियान - Selfies campaign




  • भारत के पूूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी जी ने जून 2017 में ‘बेटी के साथ सेल्फी’ अभियान की शुरूआत जिसके तहत ‘बेटी के साथ सेल्फी’ मोबाइल एप शुरू का लांच किया गया बेटी के साथ सेल्फी’ एप कन्या भ्रूण हत्या तथा लिंग जांच के विरूद्ध विश्वव्यापी आंदोलन में मदद करेगी

  • इसके अलावा सेल्फी विद कूड़ा मुहिम भी चल रही है जिसके अगर आप अपने इलाके को गंदगी से मुक्त करना चाहते हैं तो अपने एरिया में फैली गंदगी के साथ सेल्फी खींचकर एनबीटी के सिटिजन रिपोर्टर ऐप में अपलोड कर सकते हैैं ।




बचपन में आपने भी खींची होगी 'सेल्फी'


अगर आपको याद हो तो जब स्‍मार्टफोन आने से पहले डिजिटल कैमरे थे और उससे पहले रील वाले कैमरे हुआ करते थे और आपको उसमें पूूरे परिवार का फोटो खींचना होता था तो आप उसे किसी जगह टाइमर लगाकर रखते थे और दौडकर अपनी जगह बैठ जाते थे ये भी सेल्‍फी या सेल्फ पोट्रेट (Self portraits) था या अगर आपको याद हो तो कितनों ने घर में लगे शीशे में खुद का फोटाे खींचा होगा, हालांकि बहुत से केसों में कैमरे के फ्लैश की चमक आ जाती ही थी और ये पता चलता था रील के डेवलप होने के बाद लेकिन अब सेल्फ़ी इतनी लोकप्रिय क्‍यों है

सेल्फी के फायदे -  Advantage Of Taking Selfie




  • सेल्‍फी लेने का सबसे बडा फायदा यह है इसके लिये आपको किसी की जरूरत नहीं हाेती है आप खुद ही अपना फोटो खींच सकते हैं

  • आप अगर ग्रुप फोटो खींच रहें तो आप भी उसमें शामिल हो सकते हैं जबकि पहले तस्‍वीर खीचने वाला व्‍यक्ति फोटो से गायब रहता था

  • सेल्‍फी लेते समय आप तस्‍वीर की गुणवत्‍ता काे ठीक सकते हैं, आप कैसे दिख रहे है आपके पीछे का बैकग्राउंड कैसा है इत्‍यादि

  • आप किसी भी काेण से बडें आराम फोटो खींच सकते हैं

  • आप फोटो के साथ कोई भी फिल्‍टर बडे आराम से जोड सकते है


सेल्फी के नुकसान - Disadvantages of Selfie



  • आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि हर सेकंड अकेले फेसबुक पर दस हज़ार से ज्यादा सेल्फ़ी अपलोड होती है वह भी केवल भारत से, लेकिन इससे ज्‍यादा आश्‍चर्य आपको यह जानकर होगा कि सेल्फ़ी दुर्घटनाओं का कारण भी बन रही हैं एक न्‍यूज के अनुसार 2014 से सितंबर, 2016 के बीच दुनिया भर में सेल्फी लेने के चक्कर में 127 लोगों ने जान गंवाई, जिनमें से लगभग 60% यानि 76 मौतें भारत में हुई हैं ये आंकडा चौकाने वाला है

  • ऐसे देश जहां सेल्फी लेने के चक्कर लोगों अपनी जान गवांई है उन्‍हें सेल्फी डेथ कंट्री में शामिल किया गया जिसमें अब भारत भी है, सरकार ने ऐसी कई जगहों पर नो सेल्फी जोन बनायें हैं जहां सेल्फी लेना खतरनाक हो सकता है

  • इसके अलावा ज्‍यादा सेल्फी लेने का शौक कई सारी मनोवैज्ञानिक बीमारियों को जन्‍म दे रही है

  • कुछ मामलों में लोग कॉस्मेटिक सर्जरी करा रहेे हैैं कि उनकी सेल्फी अच्‍छी आये

  • सेल्‍फी लेने आदत लोगों के रोज के काम में बाधा भी डाल रही है

  • सेल्‍फी लेने के बाद उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं किया जाये तो उसे बेचैनी होने लगती है


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गूगल तेज पेमेंट एप्‍प क्‍या है - What is Google Tez Payment App (Hindi)

गूूगल ने अभी हाल ही मेें ऑनलाइन पेमेंट सर्विस तेज पेमेंट एप्‍प (Tez Payment App) लॉन्च किया है, अगर आपने भीम एप्‍लीकेशन इस्‍तेमाल किया है तो आपको गूगल तेज पेमेंट एप्‍प (Google Tez Payment App) जरूर पसंद आयेगा, ये एप्‍लीकेशन भी UPI पर काम करता हैै तो आईये जानते हैं गूगल तेज पेमेंट एप्‍प क्‍या है - What is Google Tez Payment App

गूगल तेज पेमेंट एप्‍प क्‍या है - What is Google Tez Payment App


गूगल तेज पेमेंट एप्‍प (Google Tez Payment App) UPI पर काम करता है यूपीआई यानी यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (Unified Payment Interface) पैसे भेजने का एक सिस्टम है। यह बहुत सरल है बस आपका मोबाइल नंबर आपके बैंक खाते सेे लिंंक होना चाहिये इसके अलावा और किसी चीज की आवश्‍यकता नहीं है, पैसा बैंक अकाउंट से सीधा बैंक अकाउंट में ही ट्रांसफर होगा यहॉ पेटीएम और फीचार्ज एप्‍प की तरह कोई मोबाइल वॉलेट नहीं है। अगर देखा जाये तो यह भीम एप्‍लीकेशन का एडवांस वर्शन है, गूगल तेज पेमेंट एप्‍प (Google Tez Payment App) ऐक्सिस, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ एयरटेल पेंमेट बैंक, जैसे लगभग 55 सरकारी और प्राइवेेट बैंक के साथ्‍ा काम कर रही है


गूगल तेज पेमेंट एप्‍प (Google Tez Payment App) सुविधायें



  • सभी टांजैक्शन Tez Shield से सुरक्षित होंगे

  • Audio QR दिया गया है अल्ट्रासोनिक पर आधारित है यानि अगर आपके पास कोई दूसरा फोन है तो इसमें कोई पेयर करने की जरूरत नहीं है चाहे कोई भी फोन हो पैसा ट्रांसफर हो जायेगा

  • Tez ऐप से किए गए सभी पेमेंट्स UPI PIN और गूगल पिन से सुुुरि‍क्षित किया जायेगा

  • ऑफर के तहत कस्टमर्स को रिवॉर्ड भी दिए जाएंगे. रेफरल स्कीम भी है जिसके जरिए किसी दूसरे को आप रेफर करेंगो और वो इस लिंक से इसे इंस्टॉल करेगा तो 51 रुपये का रिवॉर्ड मिलेगा. रेफर करने की कोई लिमिट नहीं है आप जितने लोगों को चाहें रेफर कर सकते हैं यह ऑफर 1 अप्रेल 2018 तक है


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बायोमेट्रिक प्रणाली क्या है - What is Biometric System

बायोमेट्रिक अटेंडेंस या बायोमेट्रिक उपस्थिति के बारे में आपने सुना ही हाेगा, देश में कई विभागों, स्‍कूलों में बायोमेट्रिक डिवाइस जैसे फिंगरप्रिंट स्कैनर लगाये जा रहे हैं ताकि बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली को लागू किया जा सके लेकिन क्‍या आप जानते है क्‍या है ये बायोमेट्रिक्स या बायोमेट्रिक का अर्थ तथा बायोमेट्रिक प्रणाली कैसे काम करती है तो आईये जानने की कोशिश करते हैं बायोमेट्रिक प्रणाली क्या है - What is Biometric System

बायोमेट्रिक प्रणाली क्या है - What is Biometric System in Hindi



बायोमेट्रिक प्रणाली क्या है - What is Biometric System


बायोमेट्रिक विज्ञान की एक शाखा है इस हिंदी में जैवमिति कहते हैं, यह शब्‍द दो यूनानी शब्‍दों बायोस और मेट्रोन से मिलकर बना है जिसमें बायोस का अर्थ जीवन से संंबधित और मैट्रोस का अर्थ माप करना होता है, इसमें तकनीक में किसी व्‍यक्ति की पहचान करने के लिये उसके बायोलॉजिकल आंकडों जैसे अंगूठे और अंगुलियों के निशान और आवाज एवं आँखों का रेटिना, नसों के इंप्रेशन आदि का इस्‍तेमाल किया जाता है



बॉयोमीट्रिक्स क्‍यों आवश्‍यक है - Why Biometrics is necessary





  • सुरक्षा के लिहाज से किसी व्‍यक्ति की असली पहचान का बचाने के लिये बायोमेट्रिक जरूरी है, भारत में सबसे ज्‍यादा एटीएम बदलने कर पैसे निकालने के बहुत सारे केस होने लगे हैं जहां कोई व्‍यक्ति पीछे से पासवर्ड पता कर और चालकी से अापको एटीएम बदलकर पैसे निकाल लेता है लेकिन अब कुछ एटीएम मशीनों पर बायोमेट्रिक डिवाइस जैसे फिंगरप्रिंट स्कैनर लगाये जा रहे हैं जो पासवर्ड के स्‍थान पर आपका बॉयोमीट्रिक सत्‍यापन (Biometric verification) करने के बाद ही पैसे निकालेगा

  • कुछ ऐसी जगह है जहां अनधिकृत (Unauthorized) लोगों के प्रवेश को रोकने के लिये बायोमेट्रिक मशीन लगायी जाती है, जहां आपका बॉयोमीट्रिक सत्‍यापन (Biometric verification) होने के बाद ही गेट खुलता है

  • इसके द्वारा ऐसे लोगों की पहचान भी की जा सकती है जो अपना पता बताने में असमर्थ है जैसे कि छोटे बच्‍चे भारत में हर व्‍यक्ति का आधार कार्ड बनाया जा रहा है जो इसी तकनीक पर आधारित है जिसमें आँखों के रेटिना और अपने फिंगरप्रिंट के साथ घर का पता इत्‍यादि जानकारी भी फीड की जाती है और अगर कोई बच्‍चा किसी कारणवश गुम हाे जाता है और उसका आधार कार्ड बनाया गया है तो उसकी पहचान और पता सेकेण्‍डों मेें पता लगाया जा सकता है

  • बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली (बीएएस) या बायोमेट्रिक अटेंडेंस को भी कार्यालयों, स्‍कूल कॉलेजाेें में लागू किया जा रहा है ताकि लोग समय से अपने स्‍थान पर उपस्थित हों और व्‍यवस्‍था में सुुधार आये


कैसे काम करती है बायोमेट्रिक प्रणाली - How Biometric System Works


बायोमेट्रिक प्रणाली में बायोमेट्रिक डाटा काे इकठ्ठा करने के लिये ज्‍यादातर ऑप्टिकल फिंगरप्रिंट स्कैनर (optical Fingerprint scanner) का इस्‍तेमाल किया जाता है इसमें व्‍यक्ति की उंगलियों को स्‍कैनर पर रख कर स्‍कैन किया जाता है तो यह फिंगरप्रिंट स्कैनर (Fingerprint scanner) एक सॉफ्टवेयर में फिंगरप्रिंट आंकडों को इकठ्ठा करता है, इसके बाद ऑपरेटर इन्‍हीं उगलियों के ऑकडों के साथ अन्‍य जानकारी जैसे नाम, पता आदि फीड कर दिये जाते हैं, अगली जब कोई व्‍यक्ति इस फिंगरप्रिंट स्कैनर (Fingerprint scanner)पर अपनी उंगली का रखता है फिंगरप्रिंट स्कैनर (Fingerprint scanner) उसकी अंगुली की इमेज लेता है और सॉफ्टवेयर में फिंगरप्रिंट डाटा पहले से स्टोर किस डाटा से मैच करता है डाटा मैच होने पर जानकारी सामने आ जाती है

ऑप्टिकल फिंगरप्रिंट स्कैनर (optical Fingerprint scanner)


ऑप्टिकल फिंगरप्रिंट स्कैनर (optical Fingerprint scanner) किसी भी फिंगरप्रिंट की पहचान के लिये इमेेेज का सहारा लेता है यानि अगर डुल्‍पीकेट इमेज उसके सामने रख दी जाये तो वह उसे भी असली मान लेगा जैसा कि एक खबर के अनुसार बायोमेट्रिक एटेंडेंस पर असली फिगर प्रिंट की जगह की फिगर प्रिंट के रबर मोहर (Rubber stamp) तैयार कर उसे इस्‍तेमाल किया जा रहा है जो ऑप्टिकल फिंगरप्रिंट स्कैनर (optical Fingerprint scanner) असली फिंगरप्रिंट जैसा ही लगता है

कैपेसिटिव फिंगरप्रिंट स्कैनर (capacitive fingerprint scanner)


इसके अलावा जो फिंगरप्रिंट स्कैनर (Fingerprint scanner) आपके फोन में होता है वह कैपेसिटिव फिंगरप्रिंट स्कैनर (capacitive fingerprint scanner) होता है यह ऑप्टिकल फिंगरप्रिंट स्कैनर (optical Fingerprint scanner) से ज्‍यादा सुरक्षित होता है पहला यह केवल शरीर के सम्‍पर्क में अाने पर ही एक्टिव होता है जैसे कि आपके मोबाइल फोन की टच स्‍क्रीन काम करती है बिलकुल उसी प्रकार से और दूसरा यह फिंगरप्रिंट में इसमें के अलावा फिंगरप्रिंट के डिजायन, उसके उभाराेें का भी एक मैप बना लेता है और अगली बार जब  कैपेसिटिव फिंगरप्रिंट स्कैनर (capacitive fingerprint scanner) पर उॅॅॅॅगली रखी जाती है तो यह उसे झट से पहचान लेता है



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क्‍या है ऑडियो क्‍यूआर - What is Audio QR in Hindi

अभी तक आपने क्‍यूआर कोड (Code) के बारे में तो सुुना ही होगा और प्रयोग भी किया होगा, दरअसल क्यूआर कोड (QR Code) बहुत सारे काले बिन्दु और लाइनों वाला एक छोटा सा चौकार चिञ होता है लेकिन यहां हम बात करने वाले हैं ऑडियो क्‍यूआर (Audio QR) के बारे में जहां पर आवाज के माध्‍‍‍यम से एक फोन से दूसरेे फोन को कनेक्‍ट किया जा सकता है तो आईये जानते हैं क्‍या है ऑडियो क्‍यूआर - What is Audio QR in Hindi


दरअसल ऑडियो क्‍यूआर (Audio QR) अल्ट्रासाउंड तरंगों (Ultrasound waves) का प्रयोग करता है यह अल्ट्रासाउंड तरंगों का एक कोड जनरेट करता है जिसे केवल दूसरा फोन ही सुुुन पाता है इसका दायरा सीमित होता है यानि किसी फोन के पास ले जाने पर और दोनों फोन में ऑडियो क्‍यूआर (Audio QR) एक्टिव करने पर ही ये काम करता है, ये फोन आवाज तो पैदा करता है लेकिन इसे आप यानि मनुष्‍य नहीं सुन पाते हैं, कोई भी आवाज हम तक तरंगों या सीधी भाषा में कहें तो कंपनों के माध्‍यम से पहुचती है इसे hertz में मापा जाता है मनुष्‍य 20 से 20000 कंपन प्रति सेकेण्‍ड (hertz) की ध्‍वनि को आसानी से सुन सकता है, लेकिन अल्ट्रासाउंड तरंगों (Ultrasound waves) की आवृत्ति (Frequency) 20000 कंपन प्रति सेकेण्‍ड (hertz) से बहुत ज्‍यादा होती है जिसे आपके कान नहीं सुुन पाते हैं लेकिन फोन का स्‍पीकर इस ध्‍वनि का उत्‍पन्‍न कर सकता है और दूूसरे फोन का माइक्रोफोन इसे सुन सकता है इस तरह बिना शोर किये ऑडियो क्‍यूआर (Audio QR) काम करता है इस फीचर का उपयोग तब महत्वपूर्ण हो जाता है जब आप अपने फोन नंबर, वर्चुल पेमेंट एड्रेस और बैंक डिटेल को जाहिर नहीं करना चाहते।

 

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सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट क्या है - What Is Central Processing unit in hindi

सीपीयू यानि सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit) इनपुट डाटा को प्रोसेस करता है इसके लिये सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट और अर्थमेटिक लॉजिक यूनिट दोनों मिलकर अंकगणितीय गणना (Arithmetic Calculation) और तार्किक गणना करते हैैं और डाटा को प्रोसेस करते हैं CPU को कंप्यूटर का मस्तिष्क कहा जाता है आईये जानते हैं सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit) क्‍या है -


सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट क्या है - What Is Central Processing Unit in Hindi


कंप्‍यूटर की संरचना (Computer Architecture) में सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit)  केेन्‍द्र में रहता है इनपुट यूनिट (Input unit) द्वारा डाटा और निर्देशों को कंप्‍यूटर में एंटर किया जाता है और इसके बाद सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit) डाटा को प्रोसेस करता है और आपको आउटपुट देता है, डाटा को प्रोसेेस करनेे में यह अपने दो भागोंं की मदद लेता है अर्थमेटीक लॉजिक यूनिट (Arithmetic Logic Unit ) और कंट्रोल यूनिट (Control Unit)

अर्थमेटीक लॉजिक यूनिट (Arithmetic Logic Unit )


अर्थमेटीक लॉजिक यूनिट (Arithmetic Logic Unit ) अंकगणितीय गणना (Arithmetic Calculation) और तार्किक गणना (Logical calculation) का काम करता है, जैसे जोड़, घटाव, गुणा, भाग और <, >, =, हाँ या ना

कंट्रोल यूनिट (Control Unit)


कंट्रोल यूनिट (Control Unit) कंप्‍यूटर में हो रहे सारे कार्यो नियंत्रित करता है और इनपुट, आउटपुट डिवाइसेज, और अर्थमेटीक लॉजिक यूनिट (Arithmetic Logic Unit ) के सारे गतिविधियों के बीच तालमेल बैठाता है।


प्रोसेसर में कोर क्‍या है - What Is Core In Processor


कोर (Core) सीपीयू यानि प्रोसेसर के अंदर लगी एक गणना (computation) करने वाली यूनिट या चिप होती है, एक कोर वाले को Single Core Processor कहते हैं प्रोसेसर की शक्ति गीगाहर्टज (GHz) पर निर्भर करती है, यानि जो प्रोससेर जितने ज्‍यादा गीगाहर्टज (GHz) का होगा उतनी ही तेजी से गणना करेगा। अब फिर सेे बात करते हैंं कोर की डुअल-कोर, क्वाड-कोर, ऑक्टा-कोर क्‍या हैं ?



Single Core Processor ज्‍यादा बोझ पडते ही हैंग होने लगता था, इसलिये इसकी क्षमता बढाने के लिये प्रोसेसर में अतिरिक्‍त कोर (Core) लगाये जाते हैं, इनकी संख्‍या के आधार पर ही प्रोसेसर के नाम पडें आईये जानते हैं -


  1. दो कोर मतलब -  Dual Core Processor

  2. चार कोर मतलब - Quad Core Processor

  3. छह कोर मतलब - Hexa Core Processor

  4. आठ कोर मतलब - Octo Core Processor

  5. दस कोर मतलब - Deca Core Processor


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आप तो जानते है कि "आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है" लेकिन इन आविष्कार को करने के लिये आविष्कारक भी होने चाहिये, अगर ये आविष्कारक (...