हिन्दी भाषा का इतिहास
भाषा : भावांे और विचारांे को प्रकट करने वाले मानव मुख से निकले ध्वनि संकेत ही भाषा है, अर्थात अभिव्यक्ति का साधन है।
लिपि : ध्वनि को अंकित करने के लिए निश्चित किये गये चिन्हों की व्यवस्था को लिपि कहते है।
अधिकांश भारतीय भाषाआंे का विकास ब्राही लिपि से हुआ है। हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है।
ब्रजभाषा तथा मराठी की देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।
आर्य परिवार की भाषायें
सबसे प्राचीन आर्य भाषा संस्कृत हैं।
उत्तर भारत की अधिकांश भाषायंे जैस-हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, मराठी, राजस्थानी आदि भाषाआंे का मूल श्रोंत संस्कृत है।
संस्कृत को देवभाषा भी कहा गया है।
द्रविड परिवार की भाषायंे-
दक्षिण भारत की अधिकांश भाषायें जैसे-तमिल, तेलगु कन्नड़ मलयालम आदि।
सबसे प्राचीन द्रविड भाषा तमिल है।
सबसे अधिक बोली जाने वाली द्रविड परिवार की तेलगु है।
आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास के चार चरण है-
वेदों की भाषा- वैदिक संस्कृत
रामायण, महाभारत की भाषा-लौकिक संस्कृत
पालिक और प्राकृत - जैन तथा बौद्ध ग्रन्थांे की भाषा (अपग्रंश)
इस प्रकार आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास अपभ्रंश से हुआ है।
आगे चलकर प्राकृत भाषा अपभ्रंशांे में विभाजित हो गयी थी-
शौरसेनी, पैशाची, महाराष्ट्र, मगधी, अर्धमगधी
भाषायें अपभ्रंश
पंजाबी पैशाची
ब्रजभाषा, गुजराती, राजस्थानी शौरसेनी
बिहारी, बंग्ला, उड़िया, असमी मागधी
मराठी महाराष्ट्री
हिन्दी भाषा के विभिन्न रूप
पूर्वी हिन्दी अवधी
बिहारी हिन्दी मैथिली
पश्चिमी हिन्दी खड़ी बोली
राजस्थानी हिन्दी मालवा
14. सितम्बर 1949 को भारत की संविधान सभा ने अनुच्छेद 343 के तहत हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप मंे स्वीकार किया। हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा होने का गौरव प्राप्त है।
निम्न राज्यांे की राजभाषा हिन्दी है-
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश, उत्तरांचल, झारखण्ड, छत्तिसगढ़ दिल्ली तथा अंडमान निकोबार।
वर्णमाला
भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है, इसी अखण्डित ध्वनि को वर्ण कहते है। स्वरों का क्रमबद्ध व्यवस्थित समूह वर्णमाला कहलाता है।
हिन्दी वर्णमाला में 52 वर्ण हैं। हिन्दी वर्णमाला को दो भागों में बाँटा गया है-
1. स्वर - स्वरों की सहायता से बोले जाने वाले वर्ण स्वर कहलाते हैं। हिन्दी वर्णमाला में 11 स्वर हैं।
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ
2. व्यंजन- स्वरों की सहायता से बोले जाने वाले वर्णव्यंजन कहलाते हैं। हिन्दी वर्णमाला में 33 व्यंजन हैं।
क वर्ग - क, ख, ग, घ, ड
च वर्ग - च् , छ, ज, झ, ञ
ट वर्ग - ट, ठ, ड, ढ़, ण
त वर्ग - त, थ, द, ध, न
प वर्ग - प, फ, ब, भ, म
य वर्ग - य, र, ल, व
स वर्ग - स, ष, श
ह वर्ग - ह
इसके अलावा हिन्दी में कुछ अतिरिक्त वर्णों का भी उपयोग भी सुविधा की दृष्टि से होता हष्ै जो निम्न है-
संयुक्त व्यंजन-
ये दो व्यंजनांे से मिलकर बनते है।
क्ष - क $ श
त्र - त $ र
ज्ञ - ज $ ञ
श्र - स $ र
1. आयोगवाह वर्ण
अनुस्वार - अं
विसर्ग - अः
द्विगुण - ड,ढ
स्वर को दो भागांे में बांटा गया है।
1. हस्व स्वर या मूल स्वर-
वे स्वर जिन्हें बोलने में हृस् स्वरों से अधिक समय लगे वे दीर्घ स्वर कहलाते है, इन्हें संयुक्त भी कहते हैं।
आ, ई, ऊ, ए, एै, ओ, औ,
स्वर वर्ग उच्चारण स्थान
अ,आ कण्ठय गला
इ,ई तालव्य तालू
उ, ऊ ओष्ठय ओठ
ऋ मूर्धन्य मूर्धा
ए,ऐ कण्ठतालव्य गला और तालू
ओ, औ गण्ठोष्ठ्य गला और ओठ
व्यंजन चार प्रकार के होते हैं-
1. स्पर्शी व्यंजन-
जिनके उच्चारण मंे जीभ मुँह के अन्य भागों से पूरी तरह स्पर्श हो।
अघोष अघोष संघोष संघोष सघोष
कंठय (गला) क ख ग घ ड
मूर्धन्य (मूधी) ट ठ ड ढ ण
दन्त्य (दाँय) त थ द ध न
आंष्ठय (आंट) प फ ब भ में
2. स्पर्श संघर्षी व्यंजन-
जिनके उच्चारण में जीभ मूँह के अन्य भागों से पूरी तरह स्पर्श न हो।
तालव्य (तालू) ब छ ज झ ञ
3. अन्तः स्थ व्यंजन -
इन्हें स्वर तथा व्यंजन का मध्यवर्ती भी कहते हैं। सभी संघोष तथा अल्पप्राण होते है।
वर्ग उच्चारण स्थान
य तालव्य तालू
र वत्स्र्य दतमूल
ल वत्सर्य दंतमूल
व दंतोष्ठय निचले ओठ $ ऊपरी दाँत
4. ऊष्मीय व्यंजन-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्य व्यंजनों की अपेक्षा अधिक ऊष्मा व्यय हों।
वर्ग उच्चारण स्थान
व तालव्य तालू
र वत्स्र्य दंतमूल
ल वत्स्र्य दंतमूल
व दनोष्ठय निचले ओठ $ ऊपरी दाँत
4. ऊष्मीय व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्य व्यंजनों की अपेक्षा अधिक ऊष्मा व्यय हो। वर्ग उच्चारण स्थान
श अल्पप्राण अघोष तालव्य तालू
ष अल्पप्राण अघोष मूर्धन्य मूर्धा
स अल्पप्राण अघोष वत्स्र्य दंतमूल
हाप्राण सघोष स्वरयंत्रीय स्वरयंत्र(गला)